काठमांडू. नेपाल एक बार फिर बड़े राजनैतिक संकट के मुहाने पर खड़ा है। नेपाल में कामचलाऊ प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल ने आशंका जाहिर की है कि हाल ही में पीपल लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के कुछ कमांडरों का चीन दौरा नेपाल में बगावत की एक नई शुरुआत हो सकती है। पोखरा एयरपोर्ट पर पत्रकारों से बात करते हुए माधव कुमार ने यह बात कही।
माधव कुमार ने कहा, 'मुझे शक है कि माओवादी देश को तबाही की तरफ ले जा रहे हैं, वे विकास के कामों में बाधा डाल रहे हैं। बजट की राह में रोड़़े अटका कर माओवादी हजारों लोगों को बेरोज़गार बना रहे हैं।' उनके मुताबिक, अपनी छावनियों में हथियारों का जमावड़ा और बजट रोकने के पीछे उनका मकसद विद्रोह भी हो सकता है। नेपाल के मुताबिक, वे देश को और अस्थिर करना चाहते हैं, जिसके लिए वे बगावत की तैयारी कर रहे हैं। कार्यवाहक प्रधानमंत्री के इस आरोप से तिलमिलाए यूनिफाइड माओवादी पार्टी ने माधव कुमार नेपाल के बयान को शांति की प्रक्रिया के खिलाफ और गैरजिम्मेदाराना बताया है। पार्टी के प्रवक्ता ने दीना नाथ शर्मा ने कहा, उनकी टिप्पणी से शांति वार्ता पटरी से उतर जाएगी। गौरतलब है कि नेपाल राजनैतिक अस्थिरता का शिकार है। उधर, शुक्रवार को 14 वीं बार नेपाली संसद नए प्रधानमंत्री का चुनाव नहीं कर पाई। शुक्रवार को हुई वोटिंग में प्रधानमंत्री पद के इकलौते उम्मीदवार राम चंद्र पौडेल बहुमत पाने में नाकाम रहे।
शुक्रवार को नेपाली कांग्रेस पार्लियामेंटरी पार्टी के नेता पौडेल के पक्ष में 96 वोट पड़े जबकि उनके विरोध में दो वोट पड़े। 40 सांसद तटस्थ रहे। इससे पहले 13वें दौर में पौडेल को 98 वोट मिले थे। स्पीकर सुभाष चंद्र नेंबंग ने नतीजे का ऐलान करते हुए कहा, नेपाली कांग्रेस के प्रस्ताव को नामंजूर किया जाता है क्योंकि इसे साधारण बहुमत भी नहीं मिल पाया है। अब 15वें दौर की वोटिंग के लिए एक नवंबर का दिन तय किया गया है। प्रधानमंत्री पद की रेस से माओवादी नेता पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड नेपाली संसद में छठे दौर की वोटिंग के बेनतीजा रहने के बाद हट गए थे। कार्यवाहक प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल ने 30 जून को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद से कोई भी नेता संसद में बहुमत हासिल नहीं कर पा रहा है।
अस्थिरता का शिकार है नेपाल
माओवादियों ने मई 2009 में सरकार से इस्तीफा दिया था। वजह यह थी कि सेना प्रमुख रुकमांगद कटवाल को बर्खास्त करने के प्रयास में माओवादियों ने राष्ट्रीय सेना में कमान बदलने को लेकर अड़ियल रवैया अख्तियार कर लिया था। तभी से राष्ट्रपति रामबरन यादव और प्रधानमंत्री नेपाल माओवादियों के निशाने बन गए थे। माओवादियों को जल्दी ही इस्तीफा देने की अपनी भयानक भूल का अहसास हो गया। उन्होंने प्रधानमंत्री नेपाल को अपदस्थ करने का कोई तरीका बाकी नहीं छोड़ा। माधव कुमार नेपाल प्रारंभ से ही कमजोर प्रधानमंत्री थे। खुद नेपाल को हालांकि शुचिता और ईमानदारी के लिए जाना जाता था, लेकिन उनकी सरकार में न इच्छाशक्ति थी, न सामर्थ्य। ऊपर से कई मंत्री भ्रष्टाचार व ज्यादतियों के आरोपों से घिरे थे।
लेकिन एक कमजोर सरकार को भी संवैधानिक और संसदीय प्रक्रिया से ही गिराया जाना चाहिए और माओवादी यही नहीं कर पा रहे थे। सत्तारूढ़ गठबंधन की छोटी-बड़ी सभी 22 पार्टियों में माओवादियों का भय इस कदर था कि कोई भी पार्टी नेपाल सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की माओवादियों की कोशिश के समर्थन में टूटकर नहीं आई। प्रधानमंत्री नेपाल को मजबूर करने के लिए माओवादी तीखे भाषणों और सड़कों पर उतर आए। पहले पांच महीने तो उन्होंने संसद का बहिष्कार और उसे ठप किया।
उससे भी बात नहीं बनी तो सीधा कार्रवाई करते हुए मई की शुरुआत में अनिश्चितकालीन राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल कर दी। उन्हें लगता था कि इसके बाद जनता विद्रोह कर देगी और सरकार गिर जाएगी। लेकिन हुआ यह कि योजना व तैयारी के साथ आयोजित उनकी मई दिवस रैली पर काठमांडु के दरबार चौक में आयोजित स्वत:स्फूर्त शांति सभा भारी साबित हुई। आम हड़ताल से मकसद नहीं सधा। नेपाल सरकार तो नहीं ही झुकी, देश भर में माओवाद-विरोधी भावना गहराने लगी। लोग कहने लगे कि माओवादी अध्यक्ष पुष्प कमल दहल ने पिछले वर्ष गंवाई प्रधानमंत्री की कुर्सी वापस पाने के अपने निजी एजेंडे के लिए पार्टी और समाज दोनों को बंधक बना लिया है। अंतत: हड़ताल वापस लेनी पड़ी।
जून 2010 के घटनाक्रम को लेकर खुद माओवादी नेताओं में मतभेद उभरने लगे। पार्टी ने तय किया कि वह सरकार के बजट का समर्थन नहीं करेगी। राष्ट्रपति यादव ने सभी राजनीतिक दलों से कहा है कि वे सरकार के नेतृत्व के लिए सर्वानुमत उम्मीदवार 7 जुलाई तक खोज लें। इस समय सीमा में यह हो पाना अब संभव दिखाई नहीं देता। संविधान की रचना के लिए बेहतर यही है कि सभी दलों की राष्ट्रीय सरकार सत्ता में आए, लेकिन साफ है कि बहुमत-प्राप्त गठबंधन सरकार ही बन सकती है। संभावना कम है कि अन्य बड़ी पार्टियां यूसीपीएन (माओवादी) को गठबंधन का नेतृत्व सौंपने पर राजी होंगी। बावजूद इसके कि यह सदन में 38 फीसदी उपस्थिति के साथ सबसे बड़ी पार्टी है। अन्य दल माओवादियों को समर्थन देने से इसलिए हिचकते हैं क्योंकि उन्होंने अपने सैन्य और अर्धसैन्य संगठनों को कायम रखा है। 30 जून, 2010 को माधव कुमार नेपाल ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
No comments:
Post a Comment