Friday, October 8, 2010

क्या बिहार के 43 प्रतिशत लोग अपराधी हैं?

नई दिल्ली. बिहार में विधानसभा चुनाव जोरो पर हैं। सभी दल विकास के नाम पर वोट मांगने की बात कर रहे हैं। नीतीश कुमार तो अपने मुख्यमंत्रीकाल के दौरान किए गए विकास कार्यों का गुणगान करने में लगे हैं। लेकिन अब तक बिहार चुनाव की जो तस्वीर सामने आई है वो सवाल खड़ा कर रही है कि क्या बिहार के 43 प्रतिशत लोग अपराधी हैं? हम ये इसलिए पूछ रहे हैं क्योंकि बिहार के लोगों का प्रतिनिधित्व करने के लिए जो लोग सामने आए हैं उनमें से ज्यादातर अपराधी हैं। बाकी आप हेमंत अत्री की यह रिपोर्ट पढ़कर समझ जाएंगे...मात्र 24 घंटे पहले चुनाव आयोग की सर्वदलीय बैठक में राजनीति का अपराधीकरण रोकने की खुली वकालत करने वाले सियासी दलों की इस मामले में गंभीरता का अंदाजा बिहार विधानसभा चुनाव के लिए अब तक जारी प्रत्याशियों की सूचियों के विश्लेषण से लग जाता है। अब तक चुनाव के लिए पांच प्रमुख दलों ने कुल 526 प्रत्याशी घोषित किए हैं जिनमें से 268 के पुराने रिकॉर्ड मौजूद हैं। इनमें से 116 प्रत्याशियों (43.28 फीसदी) के खिलाफ आम मामलों से लेकर हत्या, अवैध हिरासत, फिरौती व लूटपाट जैसे गंभीर मामले लंबित हैं। हैरानी की बात यह है कि दागी छवि के लोगों को टिकट देने में खुद को पार्टी विद ए डिफरेंस कहने वाली भाजपा सबसे आगे है। पार्टी द्वारा अब तक घोषित 87 प्रत्याशियों मंे 66 के पुराने शपथपत्र उपलब्ध हैं और इनमें से 41 (62.12 फीसदी) के खिलाफ आपराधिक मामले जारी हैं। दूसरा स्थान रामविलास पासवान की अगुआई वाली लोजपा का है जिसके 67 में से 28 प्रत्याशियों का रिकॉर्ड मौजूद हैं और उनमें 13 (46.43 फीसदी) दागी छवि के हैं। लालू यादव की राजद के 118 में 57 प्रत्याशियों का रिकॉर्ड उपलब्ध है जिनमें से 22 (38.60 फीसदी) के खिलाफ ऐसे मामले बकाया हैं। सत्तारूढ़ जनता दल यूनाईटेड भी इसमें पीछे नहीं है और उसके 132 में से 86 प्रत्याशियों का रिकॉर्ड उपलब्ध है। इनमें से 31 (36.05 फीसदी) का दागी इतिहास रहा है। नेशनल इलेक्शन वॉच नामक स्वंयसेवी संस्था द्वारा जुटाए गए आंकड़ों में सोनिया गांधी की भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भी दागी छवि के प्रत्याशी उतारने में पीछे नहीं है। कांग्रेस ने अब तक राज्य में 122 टिकट घोषित किए हैं और इनमें से 31 प्रत्याशियों का पुराना रिकार्ड उपलब्ध है। इनमें से नौ प्रत्याशी (29.03 फीसदी) दागी छवि के हैं। यह आंकड़ा सभी प्रत्याशियों के नामांकनों के दौरान भरे जाने वाले शपथपत्रों के बाद एकाएक बढ़ जाने की पूरी आशंका है। यह हालात तब है जब मात्र एक दिन पहले देश के सभी राष्ट्रीय व प्रादेशिक सियासी दलों के अगुआ केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में इस तरह के प्रत्याशियों को मैदान में न उतारे जाने की वकालत खुलकर कर चुके हैं। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति बिहार में प्रत्याशियों की आपराधिक पृष्ठभूमि को लेकर खासे चिंतित हैं। उनका कहना है कि लोकतंत्र में लोगों की इच्छा प्रदर्शित होनी चाहिए। बाहुबल और धनबल लोगों की इच्छा के प्रतीक नहीं हो सकते। ऐसे लोगों को उनका प्रतिनिधि नहीं होना चाहिए। लोकतंत्र की पवित्रता उसके जनप्रतिनिधियों की पवित्रता में ही निहित है और सभी दलों को प्रत्याशी उतारते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए।

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