Thursday, October 21, 2010

माफिया की गिरफ्त में मध्यप्रदेश की उच्च शिक्षा

माफिया की गिरफ्त में मध्यप्रदेश की उच्च शिक्षा
भोपाल 11 अक्टूबर. चंद आपराधिक प्रवृत्ति के शिक्षाविदों और राजनेताओं की मिलीभगत से जन्मे शिक्षा माफिया ने देश में उच्च शिक्षा के माहौल को धराशायी कर दिया है. इसकी छोटी तस्वीर राजधानी भोपाल के बरकतउल्ला विवि में सहज तौर पर देखी जा सकती है. यहां कब्जा जमाए बैठे माफिया की कारगुजारियां देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि किस तरह समाज को अंधे कुएं में धकेलने की मुहिम चलाई जा रही है. यहां के पाठ्यक्रमों की मान्यता खतरे में है.कई पाठ्यक्रमों की मान्यता तो समाप्त हो चुकी है. इसके बावजूद विवि प्रशासन बाकायदा झूठे दस्तावेज गढ़कर समाज को धोखा देने का प्रयास कर रहा है. मौजूदा कुलपति निशा मिश्रा इन सभी षड़यंत्रों से अनजान बनी हुई हैं.
ताजा मामला विवि में चल रहे शिक्षा के पाठ्य क्रमों की कलई खोल रहा है. विवि के पास बीएड का पाठ्यक्रम चलाने की पात्रता ही नहीं है इसके बावजूद विवि से जुड़े ढेरों कॉलेज धड़ल्ले से बीएड की डिग्रियां बेच रहे हैं. हर डिग्री करीब 80 हजार से एक लाख और सवा लाख रुपए तक में बेची जा रही है. इस व्यवस्था में सुधार करने के प्रयासों पर यहां का माफिया तरह तरह के अनर्गल आरोप लगा रहा है.
इन दिनों यहां जो विवाद गहरा रहा है उसकी नींव मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा के एक पत्र से पड़ी थी. सुधार के इन प्रयासों को विवि में कब्जा जमाए बैठा माफिया शिक्षकों की आपसी प्रतिद्वंदिता का मामला बताने का प्रयास कर रहा है. जबकि यह हकीकत में मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग के हस्तक्षेप के कारण यह स्थिति निर्मित हुई है. उच्च शिक्षा विभाग के अवर सचिव डी.एस.परिहार के हस्ताक्षरों से नौ फरवरी 2010 को एक आदेश बरकतउल्ला विवि के कुलसचिव संजय तिवारी को भेजा गया था. इस पत्र में उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा की टीप संलग्न की गई थी. जिस आदेश में कहा गया था कि प्रो.आशा शुक्ला को अतिरिक्त प्रभार देकर बीएड विभाग का विभागाध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव भेजा जाए.
इस पत्र का विवि प्रशासन ने तत्काल कोई जवाब नहीं दिया और बीएड के विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ.हेमंत खंडाई ,संचालक प्रो.कालिका यादव, और विभागाध्यक्ष प्रो.नीरजा शर्मा से प्रो.आशा शुक्ला के बारे में राय व्यक्त करने के निर्देश दिए. विभाग के संचालक बरकतउल्ला विवि शिक्षक संगठन के अध्यक्ष भी हैं और उनके ही मार्गदर्शन में यहां निजी कॉलेजों से बीएड कराने का पूरा माफिया संचालित होता है. इन तीनों प्रभारियों का शिक्षकों के शिक्षण और प्रशिक्षण से कोई लेना देना नहीं है. कालिका यादव अर्थ शास्त्र में एम.ए. हैं,जबकि नीरजा शर्मा मनोविज्ञान में एम.ए. हैं. हेमंत खंडाई एम.एड ही नहीं हैं. यहां पदस्थ पूरा स्टाफ अस्थायी है और उसके पास पर्याप्त शैक्षणिक योग्यता ही नहीं है.
इन सभी शिक्षकों को जब ये महसूस हुआ कि मध्यप्रदेश का उच्च शिक्षा विभाग उनके हाथों से काली कमाई का झरना छीनना चाह रहा है तो उन्होंने प्रो.आशा शुक्ला के बारे में अनर्गल तथ्यों से भरी एक शिकायत कुलसचिव को भेजी इस पत्र की प्रति जब प्रो. आशा शुक्ला को मिली तो उन्होंने सूचना के अधिकार अधिनियम में बीएड विभाग के बारे मे जानकारी मांगी जिससे विभाग की असलियत का खुलासा हुआ है. जिन शिक्षकों के पास शिक्षकों के प्रशिक्षण की आधारभूत योग्यता नहीं है वे कैसे यह विभाग चला रहे हैं. इन जानकारियों के खुलासे के बाद प्रो.आशा शुक्ला ने विवि के तीनों शिक्षकों को एक कानूनी नोटिस थमा दिया है जिससे विवि प्रशासन हक्का बक्का है. विवि के सूत्र इस मामले को शिक्षकों की आपसी प्रतिद्वंदिता बताकर मामले की लीपापोती करने की कोशिश में जुटा है जबकि मामले की गंभीरता इससे कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण है.
प्रो. आशा शुक्ला ने जो नोटिस दिया है उसमें उन्होंने अपने बारे में की गई शिकायत का बिंदुवार हवाला दिया है. विवि के महिला अध्ययन केन्द्र में विभागाध्यक्ष के रूप में कार्यरत प्रो.आशा शुक्ला ने अपने कानूनी सलाहकार एडव्होकेट रजनीश बरया के माध्यम से जो नोटिस भेजा है उसमें कहा गया है कि तीनों शिक्षकों ने मनगढ़ंत तौर पर जो आरोप लगाए हैं उनके बारे में यथायोग्य माफी मांगे अन्यथा वे अपनी पक्षकारा को हुई मानसिक प्रताड़ना के लिए उन पर पांच लाख रुपए का हरजाना देने का दावा अदालत में प्रस्तुत करेंगे.
प्रो.आशा शुक्ला का कहना है कि अव्वल तो उन्होंने विवि में शिक्षा विभाग का अतिरिक्त प्रभार दिए जाने का कोई आवेदन उच्च शिक्षा विभाग को दिया ही नहीं था. इसके बावजूद यदि माननीय उच्च शिक्षा मंत्री जी ने कोई आदेश दिया था तो उसके जवाब में उनके विरुद्ध अनर्गल आरोपों से भरा षड़यंत्र किया जा रहा है. उन्होंने कुलपति और अन्य शिक्षकों के भेजे पत्र में अपने ऊपर लगाए गए आरोपों का जवाब भी दिया है.
उन्होंने बताया कि उनकी नियुक्ति विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की ओर से दसवीं पंचवर्षीय योजना में मंजूर एक परियोजना में महिला अध्ययन केन्द्र की प्रभारी के संचालक के तौर पर प्रोफेसर वेतनमान में धारा 49 के अंतर्गत की गई थी. ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में भी इस परियोजना को जारी रखा गया. बाद मे जब परियोजना समाप्त हो गई तो कार्यपरिषद के निर्देशों के आधार पर प्रो.शुक्ला की सेवाएं विवि में संविलियित कर ली गईं. बाद में विवाद उठने पर माननीय उच्च न्यायालय ने भी इस प्रक्रिया को उचित ठहराया था.
प्रो.आशा शुक्ला ने हवाबाग महिला महाविद्यालय जबलपुर, शिक्षा विभाग कानपुर विवि और केन्द्रीय हिंदी संस्थान आगरा जैसी संस्थाओं में लगातार 16 सालों तक बी.एड.,एम.एड, और एम.फिल. जैसे पाठ्यक्रमों के लिए अध्यापन का कार्य किया है. उनके निर्देशन में पांच पीएचडी, 16 एमफिल, और 30एम.एड. स्तरीय शोध पत्र पूरे हो चुके हैं. अध्यापक शिक्षा पर 2 मोनो ग्राफ समेत कई शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं. वे अमेरिका में 1994 में हुई अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा गोष्ठी में अपना शोधपत्र भी पढ़ चुकी हैं.मप्र. भोज मुक्त विवि में वे शिक्षा विषय में शोध गाईड भी हैं. इससे पहले वे कानपुर विवि और रानी दुर्गावती विवि में भी शोध गाईड रह चुकी हैं. वे राष्ट्रीय शिक्षण प्रशिक्षण काऊंसिल (एन.सी.टी.ई.) में तीन सालों तक शोध अधिकारी भी रह चुकी हैं.एनसीटीई के नियमों के अनुसार निर्धारित पात्रता वाली वे विवि की एकमात्र शिक्षिका हैं जिसके पास एम.ए.,एम.एड.,एम.फिल.(शिक्षा),और पीएचडी(शिक्षा) जैसी उपाधियां हैं.
उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा के निर्देशों को कचरे के डिब्बे मे डालने के लिए विवि प्रशासन ने जैसा षड़यंत्र रचा उसकी कलई वैसे ही खुल भी गई. मजेदार बात तो यह है कि इस खींचतान में उन पत्रों का भी खुलासा हो गया है जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि स्वयं कुलपति निशा मिश्रा भी इस घोटाले में आरोपों के घेरे में आ गईं हैं. एनसीटीई की मान्यता के लिए जो जानकारी विवि प्रशासन ने तैयार कराई उस पर कुलपति निशा मिश्रा के भी हस्ताक्षर करवा लिए गए थे. विवि के उच्च पदस्थ सूत्र बताते हैं कि यह मंजूरी बीएड की डिग्रियां बेचने में जुटे कॉलेजों के संचालकों से प्राप्त धन के आधार पर ही दी गई थी. इसके बावजूद एनसीटीई ने विवि को दी गई मान्यता समाप्त कर दी और अपनी वेवसाईट से भी विवि का नाम हटा दिया.
विवि प्रशासन ने एनसीटीई को झूठी जानकारी भेजी जिसमें कहा गया कि डॉ.रश्मि चतुर्वेदी, सुश्री सोनिया स्थापक, श्रीमती लता बर्वे, श्रीमती पूजा कश्यप, डॉ.ममता सिंघई, श्रीमती अल्पना वर्मा, श्री सुनील सेन, आदि नियमित शिक्षक के बतौर कार्यरत हैं जबकि हकीकत में ये सभी शिक्षक केवल अस्थायी नियुक्ति के आधार पर पढ़ा रहे हैं.
हकीकत तो यह है कि इस पूरे कारोबार को शिक्षा माफिया अपनी ही रौ में चला रहा है. विद्यार्थी संगठनों को भी इस काले कारोबार में शरीक कर लिया गया है और बीएड की डिग्रियां बेचने का कारोबार धड़ल्ले से चलाया जा रहा है. सरकार ने शैक्षणिक कार्यों के लिए बीएड की अनिवार्यता तय कर दी है और तबसे ये डिग्रियां देश भर के विद्यार्थी मंहगे दामों पर खरीद रहे हैं. उच्च शिक्षा का बेड़ा गर्क करने में इस तरह सरकार और शिक्षाविद दोनों ही सहयोगी साबित हो रहे हैं. यदि भाजपा सरकार का उच्च शिक्षा विभाग इस काले कारोबार में कुछ सुधार करने की भूमिका बना रहा है तो उसे खुलकर आगे आना होगा और विश्विवद्यालयों की आड़ में चल रहे ज्ञान के इस काले कारोबार पर अंकुश लगाना होगा.

बिना आधार अयोग्य करार - दैनिक भास्कर से साभार
भोपाल. बीयू में प्रौढ़ एवं सतत शिक्षा विभाग के तीन प्रोफेसरों द्वारा लिखा गया पत्र कुलसचिव के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है। यह पत्र 30 मार्च 2010 को लिखा गया और इसमें प्रो. आशा शुक्ला को शिक्षण में कम अनुभवी बताने के साथ बूटा (बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी टीचर एसोसिएशन) का उपाध्यक्ष बनाना भी अवैधानिक बताया।
पड़ताल की तो इस पत्र को लिखने वजह के रूप में सामने आया फरवरी और मार्च में उच्च शिक्षा विभाग द्वारा लिखी गई नोटशीट और अवर सचिव डी.एस. परिहार का पत्र। फरवरी 2010 में विभागीय मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा को नोटशीट भेजकर प्रो.आशा शुक्ला को बीएड का विभागाध्यक्ष बनाए जाने के लिए प्रस्ताव मांगा।
जब इसका जवाब नहीं मिला तो मार्च 2010 में अवर सचिव डीएस परिहार ने कुलसचिव को पत्र लिखकर पुन: प्रो.शुक्ला को बीएड का विभागाध्यक्ष बनाए जाने के लिए प्रस्ताव भेजने के लिए लिखा। दूसरे पत्र के बाद प्रौढ़ एवं सतत शिक्षा के तीनों प्रोफेसर ने कुलसचिव को प्रो.शुक्ला के अयोग्य होने के साथ अन्य आरोप लगाते हुए पत्र लिखा।
इस पत्र के लिखे जाने के बाद उच्च शिक्षा विभाग ने प्रो.शुक्ला को बीएड विभाग का अतिरिक्त प्रभार देने के मामले को लंबित कर दिया। इस बात की जानकारी प्रो.शुक्ला को मिली तो उन्होंने सूचना के अधिकार में समस्त जानकारी मांगी। इसके बाद उन्हें जो जानकारी मिली उसमें तीनों प्रोफेसर द्वारा लिखा गया पत्र भी शामिल था।
पत्र मिलने के बाद प्रो.शुक्ला को बहुत दुख हुआ और उन्होंने पत्र में लिखे गए तथ्यों की असलियत के साथ 18 अगस्त 2010 को बीयू कुलपति, कुलसचिव और बूटा अध्यक्ष को सूचित करने के साथ कार्रवाई हेतू पत्र लिखा।
कार्रवाई तो नहीं हुई,पर 10 दिन बाद प्रो. शुक्ला को एक पत्र मिला जो कि प्रौढ़ एवं सतत शिक्षा के तीनों प्रोफेसर ने लिखा था। उन्होंने लिखा कि प्रो. शुक्ला की शैक्षणिक योग्यता एवं अनुभव के बारे में बिना किसी दुराग्रह के प्राप्त जानकारी के आधार पर कुलसचिव को पत्र लिखा था।
इसके बाद 31 अगस्त को पुन: प्रो.शुक्ला ने प्रौढ़ एवं सतत शिक्षा के साथ बीयू प्रशासन व बूटा अध्यक्ष को पत्र लिखकर वह आदेश मांगा, जिसके तहत तीनों एकमत होकर उनकी शैक्षणिक योग्यता पर सवाल उठाया। जब इसका जवाब नहीं मिला तो 27 सितंबर को तीनों प्रोफेसर को नोटिस भेजा,लेकिन इसका भी जवाब नहीं मिला।
ऐसे हुआ खुलासा
सतत शिक्षा तथा विस्तार विभाग में प्रो. नीरजा शर्मा , प्रो. कालिका यादव और डॉ. हेमंत खंडाई हैं। तीनों ही प्रशासनिक पद पर हैं, इसलिए प्रत्येक पत्र लिखने के पहले किसी का आदेश होना जरूरी है। डीबी स्टार को तीनों ने ही रिकॉर्डेड बातचीत में बताया है कि उन्हें कुलसचिव व कुलपति की तरफ से नोटशीट मिली थी, जिसमें उन्हें प्रो.शुक्ला के बारे में लिखने के लिए कहा गया था।
जब इस बात की सच्चई जानने के लिए कुलपति और कुलसचिव से पूछा तो उन्होंने नोटशीट लिखे जाने से इंकार कर दिया। लेकिन तीनों प्रोफेसर द्वारा लिखे गए पत्र के कारण उच्च शिक्षा विभाग भ्रमित हो गया और प्रो.शुक्ला को अतिरिक्त प्रभार दिए जाने के मामले लंबित कर दिया गया।
पत्र में लिखे गए तथ्यों की असलियत
एक- प्रो. शुक्ला यूजीसी द्वारा स्वीकृत परियोजना महिला अध्ययन केंद्र में संचालक हैं और यह पद निश्चित अवधि के लिए स्वीकृत है।
असलियत- यूजीसी की 10वीं पंचवर्षीय योजना के तहत प्रो. शुक्ला की नियुक्ति हुई थी और 22 मार्च 2010 को जारी अधिसूचना के अनुसार संचालक नहीं विभागाध्यक्ष हैं। यह बीयू का विभाग है।
दो- प्रो. शुक्ला के पास शिक्षण का अनुभव नहीं है और वे शिक्षक भी नहीं हैं।
असलियत- प्रो.शुक्ला के निर्देशन में 16 वर्ष तक बीएड, एमएड, एमफिल (शिक्षा), शिक्षण कार्य करने के साथ पांच पीएचडी, 16 एमफिल, 30 एमएड स्तरी शोध कार्य भी हुए। एनसीटीई में 3 वर्ष तक शोध अधिकारी का जिम्मा भी संभाला। बीयू से भी पीएचडी कराने की अनुमति मांगी है।
तीन- सतत शिक्षा विभाग के तत्वावधान में संचालित बीएड का विभागाध्यक्ष बनना अनाधिकृत चेष्टा है। इसलिए कोई विचार नहीं किया जाए।
असलियत- बीएड का विभागाध्यक्ष बनने के लिए प्रो. शुक्ला ने प्रयास नहीं किया। बल्कि मंत्री ने स्वयं प्रस्ताव मांगा था और उनके पत्र के विरोध में विचार नहीं किया जाना शासन को भ्रमित करना है।
सीधी बात
प्रो. निशा दुबे/ कुलपति, बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी
जिस्ट्रार को फॉरवर्ड किया मामला
?तीन जिम्मेदार अधिकारियों ने प्रो. आशा शुक्ला के खिलाफ पत्र लिखा। क्या ये पत्र लिखने के लिए आपने कहा था?
—मुझे इस बारे में पता ही नहीं है। ये सब मेरे आने से पहले हुआ।
?तो फिर आपको पूरे मामले की जानकारी है?
—मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। हां एक शिकायत आई थी प्रो. शुक्ला की, जिसमें उन्होंने पीएचडी कराने देने की अनुमति मांगी है, उस मामले में मैंने समिति बना दी है।
?प्रो. शुक्ला ने 18 अगस्त को ही इस बारे में आपको शिकायत कर दी है?
—अच्छा वो शिकायत, उसे तो मैंने रजिस्ट्रार को फॉरवर्ड कर दिया है। अब वे ही मामला देख रहे हैं।
मैं उन्हें क्यों कहूंगा
डॉ. संजय तिवारी/ कुलसचिव,बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी
?फरवरी में उच्च शिक्षा विभाग ने प्रो. शुक्ला को बीएड विभाग का अतिरिक्त प्रभार देने के लिए लिखा था, उसका क्या हुआ?
—वह मामला प्रोसेस में है।
?उसी पत्र के बाद प्रौढ़ शिक्षा के जिम्मेदारों की तरफ से प्रो. शुक्ला को बीएड के योग्य नहीं होने के लिए पत्र लिखा गया था और तीनों जिम्मेदारों का कहना है कि ऐसा करने के लिए आपने नोटशीट भेजी थी?
—मैं ऐसा क्यों करूंगा, वे कोई बच्चे हैं।
?अगर ऐसा है तो यह मामला पद के दुरुपयोग का है, तो क्या आप तीनों के खिलाफ कोई कार्रवाई करेंगे?
—अगर शिकायत मिलती है तो फिर देखेंगे कि मामले में क्या करना है।







More

No comments:

Post a Comment