Tuesday, December 7, 2010
ICICI की मिलीभगत से कौडि़यों के शेयर सैकड़ों में बेचे, देश के बाहर हुआ सारा खेल
ICICI की मिलीभगत से कौडि़यों के शेयर सैकड़ों में बेचे, देश के बाहर हुआ सारा खेल
♦ विनीत कुमार
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स्पेक्ट्रम मामले में अपनी तेज तर्रार पत्रकार पर आरोपों के छींटे पड़ने से जो सदमा एनडीटीवी प्रबंधन को लगा था, उससे उबरने की सूरत तलाशी ही जा रही थी कि करोड़ों रुपये की जालसाजी के आरोपों ने प्रबंधन को नये सिरे से सकते में डाल दिया है। द संडे गार्जियन नाम के अखबार की साइट ने, जिसे कि इसी साल के जनवरी महीने (31 जनवरी 2010) में 3 रुपये की कीमत के साथ एमजे अकबर ने लांच किया, खबर दी है कि एनडीटीवी ने इस देश को करोड़ों रुपये का चूना लगाने का काम किया है। द संडे गार्जियन इस खबर को लगातार फॉलो कर रहा है और 6 दिसंबर तक इसकी ऑफिशियल साइट ने कुल तीन रिपोर्टें प्रकाशित की हैं। पहली बार 4 दिसंबर को साइट ने NDTV-ICICI loan chicanery saved Roys नाम से पहली रिपोर्ट प्रकाशित की और उसमें बताया कि कैसे उसे ICICI बैंक ने गलत तरीके से कर्ज दिये। इस खबर में ये भी बताया कि किस तरह से मनोरंजन चैनल (GEC) एनडीटीवी इमैजिन, जिसे कि अब TURNER GENERAL ENTERTAINMENT NETWORKS INDIA PRIVATE LIMITED के हाथों बेच दिया गया है, उसके शेयर की फेस वैल्यू यानी बाजार मूल्य 10 रुपये थे, उसे 776 रुपये में बेचे गये और ये सारा खेल देश के बाहर हुआ। भारत में जो निवेशक थे, जो कि यहां की कंपनी में थे, उन तक ये लाभ नहीं पहुंचा। रिपोर्ट ने बताया कि एनडीटीवी लगातार विदेशों में शेयरों की खरीद-बिक्री, कर्ज लेने का काम करता रहा है और ऐसी दरों पर शेयरों की खरीद-बिक्री की है, जिसका कि वास्तविक मूल्य से कोई तालमेल नहीं रहा है। इधर भारतीय बाजार में देखें, तो एनडीटीवी के शेयर लगातार तेजी से लुढ़कते रहे हैं। जाहिर सी बात है कि एनडीटीवी के जिंदा रहने के पीछे मूल रूप से विदेशों से हो रहे शेयरों की खरीद-बिक्री और लेन-देन रहे हैं।
ICICI बैंक से गलत तरीके से कर्ज लेने के मामले में रिपोर्ट में कहा गया है कि ये डील जुलाई और अक्टूबर 2008 के बीच हुई, जब एनडीटीवी ने अपने शेयर वापस खरीदने चाहे। तब एनडीटीवी के शेयर की कीमत 439 यानी वूम पर थी और उसे लग रहा था कि इसकी कीमत और बढ़ सकती है। लिहाजा एनडीटीवी ने चाहा कि वो अपने शेयर वापस खरीदे लेकिन उसके पास लिक्विड फंड नहीं था। तब उसने कुल 90,70,297 शेयर के बदले India Bulls Financial Services से 363 करोड़ रुपये उधार लिये। ये जुलाई 2008 की बात है। अगस्त 2008 में शेयर मार्केट बुरी तरह कोलैप्स कर गया। अमेरिका की वजह से पूरी दुनिया में शेयर बाजार की मिट्टी पलीद हो गयी। ऐसे में इंडिया बुल्स के पास गिरवी के तौर पर जो शेयर रखे गये थे, उसकी कीमत गिरकर 100 रुपये प्रति शेयर हो गया। इंडिया बुल्स ने अपने दिये हुए लोन की बात दोहरायी और कंपनी से पैसे की मांग की। एनडीटीवी के पास इतने पैसे कहां थे, जो कि वो इंडिया बुल को चुका पाता। लिहाजा उसने ICICI बैंक का हाथ थामा और बैंक ने अक्टूबर महीने में कुल 375 करोड़ रुपये एनडीटीवी को दिये। बदले में एनडीटीवी ने कुल 47,41,721 शेयर बैंक के पास गिरवी के तौर पर रखे, जिसकी औसत कीमत 439 रुपये लगायी गयी, जो कि लगभग 208 करोड़ रुपये होती है।
ये पहली बार था कि इस तरह से लगभग आधी रकम के शेयर के बदले इतनी रकम लोन के तौर पर दी गयी। द संडे गार्जियन का कहना है कि इसे वित्तीय जालसाजी न कहा जाए, तो और क्या कहा जाए। इतना ही नहीं, जिस समय एक शेयर की कीमत 439 रुपये लगायी गयी, उस समय (23 अक्टूबर 2008) बाजारू कीमत मात्र 99 रुपये थी। इस तरह शेयर की राशि बनती थी मात्र 46.94 करोड़ रुपये। इस पूरे मामले में सबसे दिलचस्प पहलू है कि एनडीटीवी के जो भी शेयर इंडिया बुल्स को दिये गये, फिर बाद में ICICI बैंक को दिये गये, वो सबके सब RRPR Holding Private Limited के जिम्मे थे। ये वही कंपनी थी, जिसमें बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में दो ही लोग थे – मिस्टर रॉय और मिसेज रॉय। जुलाई 2008 के पहले इस कंपनी ने एनडीटीवी के एक भी शेयर नहीं खरीदे। मामले में एक और दिलचस्प पहलू है कि इंडिया बुल्स के भुगतान किये जाने के बाद RRRR के एक बोर्ड डायरेक्टर को 73.91 करोड़ रुपये बिना किसी ब्याज के लोन दिये गये। ये वही पैसे थे, जो ICICI बैंक से कर्ज के तौर पर लिये गये और जो SARFAESI Act 2002 का सीधा-सीधा उल्लंघन था।
इस मामले में चौंकानेवाली बात है कि मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को इन सारी सूचनाओं की जानकारी मिलती रही, लेकिन वे चुप रहे। एक बड़ा सवाल है कि बैंक ने इतनी आसानी से क्यों कर्ज दे दिया? द संडे गार्जियन का कहना है कि जब पिछले ही महीने 2000 करोड़ रुपये के लोन घोटाले में सीबीआई ने LIC और दूसरे बैंकों के आठ सीनियर मैनेजरों को गिरफ्तार किया, तो फिर क्या ये मामला उससे अलग है?
द संडे गार्जियन ने अपनी दूसरी रिपोर्ट जो कि 5 दिसंबर को प्रकाशित हुई है – NDTV juggles funds, shares abroad, avoids tax, उसमें बताया है कि NDTV किस तरह से फंड को लेकर चालबाजी करता आया है, विदेशों में शेयरों के लेन-देन करके भारत में अपने को टैक्स से बचाता है। इस रिपोर्ट में साइट ने एनडीटीवी के एक के बाद एक चैनल के खोलने और फिर उसके धड़ाधड़ हिस्सेदारी बेचने के पीछे की कहानी को विस्तार से बताया है। अपने विदेशी सहायक चैनलों और वेंचरों के माध्यम से कैसे उसने भारतीय टैक्स और कार्पोरेट कानून का उल्लंघन किया है, इसकी पूरी कहानी रिपोर्ट में दी गयी है? नवंबर 2006 में NDTV Network Plc, UK को स्थापित किया गया, जिसकी बैलेंस शीट भारत में फाइल नहीं की गयी। इस कंपनी ने बहुत पैसे अर्जित किये और NDTV Imagine (जो कि अब बिक गया), NDTV Lifestyle, NDTV Labs, NDTV Convergence और NGEN Media में बहुत पैसे लगाये भी। अधिकांश डील एनडीटीवी के नाम से हुए लेकिन एक भी पैसा भारत में टैक्स के तौर पर नहीं आया। एनडीटीवी इंडिया ग्रुप ने अप्रैल 2008 के दौरान 804.6 करोड़ रुपये उगाहे, जो कि सितंबर 2009 तक आते-आते 982.2 करोड़ रुपये हो गये। एनडीटीवी ने ये पैसे अपने विदेशी स्रोतों से अर्जित किये, जो कि यूके और नीदरलैंड में उसके सहयोगी चैनलों और वेंचरों की बदौलत आये थे। इस तरह भारत में एनडीटीवी के साथ इसकी बैलेंस शीट नहीं अटैच की गयी, तो दूसरी तरफ विदेशों में जो इसके सहयोगी वेंचर हुए, उसमें विस्तार से सब कुछ नहीं बताया गया। यहां तक कि यूके NDTV Network Plc में जो कंपनी खोली गयी, उसका अपना कोई कर्मचारी भी नहीं था। जो था वो एक ही साथ कई कंपनियों का भी काम संभालता था। एनडीटीवी ने नीदरलैंड में वेंचर मजबूत करने के लिए यूके के वेंचर का इस्तेमाल किया। यूके के वेंचर को मजबूती देने के लिए नीदरलैंड के वेंचर का इस्तेमाल किया और इस तरह एक-दूसरे के सपोर्ट से काम चलता रहा। लेकिन भारत में जो इसकी बैलेंस शीट थी, उसमें यह सब दर्ज नहीं था जबकि देखा जाए तो ये भारत की एनडीटीवी के ही सहयोगी वेंचर थे। इनमें से कइयों की साइट खोलने पर डीटेल के बजाय यही आता कि यह भारत की एनडीटीवी की सहयोगी कंपनियां हैं।
रिपोर्ट ने विस्तार से बताया कि कैसे देश के बाहर इसके वेंचर को मजबूती मिलती रही, जबकि यहां इसके शेयरधारकों को इसका कोई लाभ नहीं मिला क्योंकि जिस वेंचर को लाभ पहुंचते, उसका यहां जिक्र नहीं होता।
चार दिसंबर को ही साइट ने NDTV CEO gives reply, Guardian responds शीर्षक से एक और रिपोर्ट छापी है, जिसमें कि उसने एनडीटीवी से एक बेहतर पत्रकारिता की संभावना बनी रहे, इसलिए नौ सवालों के जवाब मांगे गये। एनडीटीवी के सीईओ ने द संडे गार्जियन की इस खबर को निराधार और फर्जी करार दिया और साथ में यह भी कहा कि पब्लिकेशन और व्यक्तिगत स्तर पर सिविल और क्रिमिनल दोनों कानूनों के तहत अदालती कार्रवाई की जाएगी। साइट ने एनडीटीवी के सीईओ केएल नारायण राव के जवाब को भी प्रकाशित किया है और उसके आगे लिखा है कि उन्होंने गोलमोल तरीके से जवाब दिया है।
30 नवंबर 2010 को जब बरखा दत्त NDTV 24X7 के कठघरे में एडिटर्स के सवालों के जवाब दे रही थीं, तो एंकर सोनिया सिंह ने कहा था कि संभव हो ये पूरा मामला कार्पोरेट वार का हिस्सा हो। वर्चुअल स्पेस पर जनतंत्र डॉट कॉम ने भी इसे इसी तरह से विस्तार देने की कोशिश की है और मीडिया के लोगों के नाम आने को बहुत ही छोटा खेल बताया जा रहा है। उसमें इस बात की आशंका जतायी गयी है कि संभव है कि ओपन और आउटलुक जैसी पत्रिका भी सत्ता की दलाली के लिए ये सब कर रहे हों, इस सवाल में एक सच्चाई यहां आकर जुड़ती है कि क्या द संडे गार्जियन भी कुछ ऐसा ही कर रहा है? जनवरी में शुरू हुए इस अखबार ने एनडीटीवी के 2007-08 की डील और बिजनेस का ब्योरा अब जाकर देते हुए सारी बातें सामने लायी हैं। बैलेंस शीट भी प्रकाशित किया है। अगर ऐसा है, तो कार्पोरेट वार के साथ-साथ मीडिया वार भी शुरू हो चुका है।
एमजे अकबर इन दिनों इंडिया टुडे ग्रुप में हैं। इससे पहले महीने भर के लिए इंडिया न्यूज को सेवा देकर आये हैं। प्रेस क्लब में राजदीप सरदेसाई, द संडे इंडियन में अरिंदम चौधरी के आरोपी पत्रकारों के बचाव में उतर आने और नीरा राडिया से पत्रकारों की बातचीत के टेप आने के करीब तीन सप्ताह बाद दैनिक भास्कर में 6 दिसंबर को दो पन्ने में एक्सक्लूसिव खबर छपने की घटना से अंदाजा लगाना चाहिए कि अब मीडिया वार शुरू हो गया है। ये मीडिया वार अब खबरों की दुनिया से आगे निकलकर एक-दूसरे को पूरी तरह तहस-नहस कर देने की नीयत से शुरू हुआ है। इसके पीछे की लीला शायद यह भी हो कि ऐसी स्थिति कर दी जाए कि इस देश में बिग पिक्चर, बिग सिनेमा, बिग टीवी के साथ-साथ सिर्फ बिग मीडिया रहे, बिग खबरें रहे, दूसरा कोई नहीं। इन सबों पर गंभीरता से सोचने की जरुरत है। हालांकि द संडे गार्जियन की इस खबर पर कई ऐसे कमेंट आये हैं, जो इस खबर को बकवास बताते हैं लेकिन अगर ये खबर सच है तो समझिए कि हमारे सामने कितना बड़ा आदर्श ध्वस्त होता नजर आ रहा है?|
2 Response to 'करोड़ों रुपये की जालसाजी में फंसा एनडीटीवी'
सागर
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