भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक
आगामी रणनीति बनाने के लिए गुवाहाटी में आयोजित भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक एजेंडा और उस पर चर्चा के लिहाज से कुछ कुछ हाल ही में संपन्न कांग्रेस के महाधिवेशन जैसी रही जहां आंतरिक मुद्दों पर ध्यान देने की बजाय दूसरे पक्ष पर आरोप लगाने में ज्यादा समय बिताया गया। बैठक में भाजपा कार्यकारिणी ने भ्रष्टाचार के विभिन्न मामलों पर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के अपने घेराव को और कसने का निर्णय तो लिया ही तथा २जी स्पेक्ट्रम आवंटन में अनियमितताओं के आरोपी ठहराए जाए रहे पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा और राष्ट्रमंडल खेलों की आयोजन समिति के मुखिया सुरेश कलमाडी की बजाय सीधा प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को निशाने पर लेने का फैसला भी किया। असम विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने गुवाहाटी में पार्टी कार्यकारिणी की बैठक आयोजित की। पार्टी को यहां चुनावों में अगप के साथ मिलकर सत्ता में आने की पूरी उम्मीद है लेकिन जिस तरह से कांग्रेस सरकार उल्फा के साथ शांति वार्ता कर रही है उससे चुनाव नजदीक आते-आते कांग्रेस के पक्ष में भी माहौल बन सकता है। बहरहाल, काफी समय बाद पार्टी की ऐसी कोई कार्यकारिणी बैठक रही जिसमें पार्टी को किसी आंतरिक विवाद से नहीं जूझना पडा। वरना कभी किसी नेता के नाराज होने के चलते बैठक में नहीं आने की खबर ज्यादा उछलती थी तो कभी किसी नेता पर कार्रवाई की संभावना को लेकर कयासबाजी के चलते पार्टी की बैठक खबरों में ज्यादा रहती थी।
पार्टी की दो दिवसीय बैठक पूरी तरह भ्रष्टाचार के मामलों पर कांग्रेस और संप्रग को घेरने पर ही केंद्रित रही। बैठक के पहले दिन पार्टी अध्यक्ष का उद्घाटन भाषण हो या दूसरे दिन पार्टी द्वारा पारित राजनीतिक प्रस्ताव, दोनों में ही भ्रष्टाचार के मुद्दों पर ही ज्यादा फोकस किया गया है। राजनीतिक प्रस्ताव में वर्ष २०१० को ’कांग्रेस के घोटालों का वर्ष‘ और २०११ को ’कांग्रेस की ओर से लीपापोती का वर्ष‘ करार देते हुए कहा गया है कि बोफोर्स मामले की कडयां सीधे सोनिया गांधी से जुडती हैं तो स्पेक्ट्रम घोटाले और राष्ट्रमंडल खेलों में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर प्रधानमंत्री कार्यालय पर निशाना साधते हुए कारण बताया गया है कि ए राजा और सुरेश कलमाडी ने साफ कहा है कि उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय से आवश्यक अनुमति ली थी। बैठक में अपने उद्घाटन संबोधन में जिस तरह पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने प्रत्यक्ष रूप से प्रधानमंत्री और अप्रत्यक्ष रूप से सोनिया गांधी पर सीधा निशाना साधते हुए कहा था कि ’जहां लुटेरे सरकारी खजाने को खाली कर रहे रहे हैं वहीं प्रधानमंत्री आंखें मूंदे हुए हैं और शायद उनके हाथ बंधे हुए हैं‘, उससे साफ हो गया था कि पार्टी की यह दो दिन की बैठक केंद्र में सत्तारुढ गठबंधन के इन दो शीर्ष नेताओं पर आरोप लगाने में ज्यादा समय बिताने वाली है और हुआ भी यही। न सिर्फ बैठक बल्कि इसके बाद गुवाहाटी ही आयोजित भाजपा रैली में भी पार्टी के नेताओं ने अपना भाषण भ्रष्टाचार के मुद्दों पर ही ज्यादा केंद्रित रखा।
पार्टी ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध शंखनाद इसलिए भी किया है क्योंकि उसके मुताबिक, उसे विभिन्न राज्यों से जो रिपोर्टें मिल रही हैं उसमें उसे यह बताया जा रहा है कि महंगाई से त्रस्त जनता संप्रग के कथित भ्रष्टाचार के मामलों से काफी नाराज है और उसका झुकाव राजग की ओर हो रहा है। भाजपा नेता इसके पक्ष में बिहार विधानसभा चुनावों में हुई जीत को सशक्त उदाहरण बता रहे हैं। लेकिन उनके दावों की असलियत तब सामने आएगी जब इस साल पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के परिणाम सामने आएंगे।
दो दिन की बैठक में भाजपा ने यह साफ कर दिया कि २जी स्पेक्ट्रम मामले में जेपीसी की मांग पर वह अडिग है क्योंकि उसका मानना है कि यही समिति भ्रष्टाचार की विभिन्न परतों को खोल सकती है। भाजपा सूत्रों की मानें तो जेपीसी पर पार्टी का यह अडयल रवैया इसलिए भी है क्योंकि उसे मध्यावधि चुनावों की संभावना दिख रही है। लेकिन वह यह भूल रही है कि शायद ही सत्तारुढ गठबंधन का कोई सांसद हो जो मध्यावधि चुनाव चाहता हो। जेपीसी मुद्दे पर भाजपा के साथ खडे वामपंथी दल भी सरकार पर संकट आने की सूरत में भाजपा के साथ कतई खडे नजर नहीं आएंगे। इसके अलावा महंगाई तथा २जी घोटाले से उपजी राजनीतिक परिस्थितियों से जूझ रही कांग्रेस भी इन हालात में चुनावों का सामना करने से बचने का हरसंभव प्रयास करेगी। लेकिन लगभग सात सालों से केंद्र की सत्ता से दूर भाजपा अब कोई मौका खोने के मूड में नहीं है इसलिए वह न सिर्फ अनुमानित परिस्थितियों के आधार पर रणनीति बना रही है बल्कि २०१४ में होने वाले आम चुनावों पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है। इसके लिए पार्टी ने हाल ही में भाजपा में वापस लौटे जसवंत सिंह को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का आधार बढाने और अन्य दलों से संबंध सुधारने का जिम्मा सौंपा है। वाजपेयी शासनकाल में भी जसवंत राजग के संयोजक रह चुके हैं उस समय राजग में दो दर्जन से ज्यादा दल शामिल थे जबकि अब आधा दर्जन भी नहीं हैं। लेकिन नये साथी दलों को रिझाने के लिए प्रयास शुरू करने से पहले जद-यू और शिवसेना जैसे वर्तमान साथियों की समय-समय पर मिलने वाली घुडकियों के आगे झुक जानी वाली पार्टी को यह ध्यान रखना होगा कि कहीं वह एसी शर्तों पर गठबंधन न करे जोकि बाद में उसके लिए जी का जंजाल बन जाए।
केंद्र की कथित नाकामियों के चलते सत्ता में आने के सपने संजो रही भाजपा इससे पहले खुद को ज्यादा मजबूत भी बना लेना चाहती है इसीलिए इस वर्ष होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की जिम्मेदारी जहां अरूण जेटली और सुषमा स्वराज पर डाली गई है वहीं पार्टी संगठन को केंद्रीय और राज्य स्तरों पर चुस्त दुरुस्त करने की जिम्मेदारी वेंकैया नायडू को सौंपी गई है। नायडू एक तरह से सुपर संगठन महामंत्री होंगे। इस कवायद में यह हैरत भरी बात रही कि पार्टी जब यह जिम्मेदारियां बांट रही थी तो उसके जेहन में महज चार-पांच नाम ही रहे जबकि गडकरी को जब पार्टी की कमान सौंपी गई थी तो यह उम्मीद की जा रही थी कि वह नये लोगों को भी आगे लाएंगे और जिम्मेदारियां सौंपेंगे लेकिन संगठन और चुनावों की जिम्मेदारी भी यदि संसदीय नेताओं को ही सौंपी जा रही है तो साफ होता है कि पार्टी में या तो कुशल नेताओं का अभाव है या फिर पार्टी में अब भी उस वर्ग का कब्जा बरकरार है जो नये लोगों को आगे जल्दी नहीं आने देना चाहता।
इसके अलावा नितिन गडकरी के अध्यक्षीय भाषण पर गौर करें तो साफ प्रतीत होता है कि भाजपा को शायद यह बात समझ आ रही है कि भावनात्मक मुद्दों से उसकी नैया पार नहीं होने वाली इसलिए गडकरी ने अपने भाषण में राम जन्मभूमि पर आए अदालती निर्णय का उल्लेख भर किया लेकिन मंदिर बनाने का पार्टी का वादा नहीं दोहराया। इसके बजाए उन्होंने बताया कि किस प्रकार सुशासन के लिए पार्टी प्रतिबद्ध है और इसके लिए विभिन्न राज्यों में भाजपा सरकारें क्या क्या कार्य कर रही हैं। हालांकि उनके भाषण में तब दोमुंहापन दिखा जब उन्होंने भ्रष्टाचार के विभिन्न मामलों को गिनाते हुए संप्रग सरकार और कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा लेकिन कर्नाटक के मुख्यमंत्री पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर एक शब्द भी नहीं कहा।
पार्टी की यह दो दिवसीय बैठक एक तरह से कांग्रेस के विभिन्न आरोपों का जवाब देने के मंच में भी तब्दील सी दिखी। कांग्रेस के भगवा आतंकवाद के आरोप का जवाब भाजपा ने संप्रग की आतंकवाद के मोर्चे पर कथित विफलता का आरोप लगाकर दिया तो कर्नाटक में भाजपा सरकार के कथित भ्रष्टाचार के आरोपों पर संप्रग के कथित भ्रष्टाचारों की सूची पढ डाली। पार्टी ने अपने ’वारों‘ का निशाना इस बार राहुल गांधी को नहीं बनाया क्योंकि पार्टी के एक वर्ग का यह मानना है कि वह उन्हें जितना निशाना बनाएगी उनका कद उतना ही ऊंचा होता जाएगा इसलिए पार्टी ने शायद यह निर्णय किया कि अब सिर्फ राहुल के आरोपों का जवाब देने की रणनीति पर ही चला जाएगा।
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