Monday, January 3, 2011

हिंदू विवाह अधिनियम के तहत एक हिंदू और गैर हिंदू की शादी न तो मान्य है और न ही इस तरह की शादी के तहत कोई भी पक्ष हिंदू विवाह अधिनियम के तहत किसी भी तर


हिंदू विवाह अधिनियम के तहत एक हिंदू और गैर हिंदू की शादी न तो मान्य है और न ही इस तरह की शादी के तहत कोई भी पक्ष हिंदू विवाह अधिनियम के तहत किसी भी तरह के लाभ का दावा कर सकता है। यह कहना है कि दिल्ली हाईकोर्ट का। कोर्ट ने कहा कि केवल हिंदुत्व के सिद्धातों में आस्था रखने से कोई भी गैर हिंदू तब तक हिंदू नहीं बन सकता इसके लिए उसका धर्म परिवर्तन होना जरूरी है।

न्यायाधीश कैलाश गंभीर ने अपने हालिया फैसले में कहा कि हिंदू और गैर हिंदू के बीच भले ही शादी हिंदू रीति रिवाजों के मुताबिक हुई हो लेकिन कोई भी पार्टी इससे हिंदू विवाह अधिनियम के तहत मिलने वाले लाभ की हकदार नहीं हो सकती। लाभ के लिए दो हिंदूओं के बीच ही शादी होनी चाहिए। न्यायाधीश गंभीर ने यह आदेश एक महिला की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उसने हिंदू मैरिज एक्ट के तहत तलाक मांगा था। महिला ने अदालत में दावा किया कि 2007 में आर्य मंदिर में उसकी शादी हिंदू रीति रिवाजों के मुताबिक क्रिश्चियन धर्म को मानने वाले एक व्यक्ति से हुई थी।


कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि दोनों पक्षों के लिए यह साबित करना जरूरी है कि शादी के वक्त दोनों हिंदू थे। हिंदू धर्म में आस्था रखने से ही कोई हिंदू नहीं बन जाता। धर्म परिवर्तन किसी भी व्यक्ति की जिंदगी में बहुत बड़ा फैसला होता है। धर्म परिवर्तन के संबंध में याचिकाकर्ता को सभी सबूत पेश करने होंगे। अगर वह कोर्ट को संतुष्ट करने में कामयाब रहता है तो उसके धर्म परिवर्तन में कोई गुंजाइश नहीं रह जाती।


उल्लेखनीय है कि 2010 में पारिवारिक अदालत ने संगीता नाम की महिला की ओर से तलाक के लिए दाखिल याचिका को खारिज कर दिया था। फैमिली कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि संगीता के पास इस बात का कोई सबूत नहीं है कि उसके पति प्रेटसन जोम्स ने अपना धर्म परिवर्तन करा लिया है। फैमिली कोर्ट के इस फैसले को संगीता ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
अदालत में आये थे यह रोचक किस्से:

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