भोपाल से वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र शर्मा की रिपोर्ट
देहरादून तथा नई दिल्ली से उत्तराखण्ड की राजनीतिक स्थितियों, परिस्थितयों का अध्ययन करने के उपरांत यह पाया कि उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री डा; रमेश पोखरियाल निशंक को चक्रव्यूहों में फासने के लिए अनेक ताकतें समय समय पर सक्रिय हुई पर डा; निशंक के सतर्क रहने के कारण वह बेनकाब हो गयी, डा; निशंक को सतर्क करने वालों के खिलाफ अब टार्गेट करने की रणनीति बनायी गयी है वहीं डा; निशंक का ध्यान इस महत्वपूर्ण रणनीति की ओर नहीं जा पाया है, जिससे भविष्य में प्रतिद्वंद्वी डा; निशंक िक खिलाफ अपनी किसी रणनीति में सफल हो जाये तो अतिश्योक्ति नही होगी, वैसे भी प्रतिद्वंद्वियों द्वारा बजट सत्र तक डा0 निशंक का विकेट गिराने का दावा किया जा रहा है,
दिल्ली से प्राप्त जानकारी के अनुसार डा0 निशंक के खिलाफ स्टिंग आपरेशन की रणनीति बनायी गयी थी जिसमें डा; निशंक के कई अनछुए पहलुओं को उजागर करने व उन्हें बदनाम करने की जिम्मेदारी इस स्टिंग आपरेशन टीम के जिम्मे थी, परन्तु डा; निशंक के खिलाफ इस षडयंत्र की जानकारी एक पत्रकार व कविवर ने समय से पूर्व उन्हें दे दी जिससे वह सतर्क हो गये और उन्होंने ऐहतियातन उपाय बरत लिये, इससे स्टिंग आपरेशन संचालक मुंह पर पडे इस चपत को आसानी से नहीं झेल सके और उन्होंने पहले इस आपरेशन को लिंक करने वाले थिंक टैंक को टार्गेट करने की रणनीति बनायी, उस पर पहले आरोप लगाये गये कि डा; निशंक ने लाखों रूपये इन महोदय को पुरस्कार स्वरूप दिये हैं और उनके कई काम पुरस्कार स्वरूप किये हैं,
इसके उपरांत प्रतिद्वंद्वियों ने स्टिंग आपरेशन लिंक करने वाले पत्रकार को पहले प्रलोभन दिया कि हमें असलियत पता है कि तुम्हें कुछ भी नहीं मिला है, हमारे लिये कलम चलाओ, हम तुम्हें खाली वेबकूफ नहीं बनायेगें, जैसे तुम बनते आ रहे हो, परन्तु हमारी बात न मानने का नतीजा शीघ्र देख लेना, इस रणनीति के तहत दिल्ली में पत्रकार गोष्ठी में हुई घटना के बाद पत्रकार द्वारा लम्बे चौडे आलेखों की पहले तो आलोचना की गयी, इसके बाद निशंक के स्टिंग ऑपरेशन को लीक करने वाले पत्रकार को दिल्ली प्रेस क्लब और प्रेस समिति से निलंबित कर दिया गया,
मौखिक रूप से इस पत्रकार महोदय से साफ कहा गया कि इस्टिंग ऑपरेशन की जानकारी तुमने डाृ निशंक को देकर उन्हें बचा तो लिया अब निशंक तुम्हें बचाकर दिखाएं, और प्रेस क्लब और दिल्ली प्रेस समिति ने उन्हें निलंबित कर दिया है।
समिति के अध्यक्ष आशुतोष एंव आर.एस. पाल ने मौखिक रूप से कुछ लोगों को कथित रूप से यह जानकारी दी कि 2010 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के कई कारानामों को उजागर करने के लिए कथित रूप से एक टीम बनायी गयी थी…जिसमें कुछ निजी चैनल शामिल थे। इन सभी के पास निशंक के खिलाफ कई तथ्य भी मौजूद थे….जिसको साबित करने के लिए निशंक के स्टिंग की पूरी तैयारी की जा चुकी थी….लेकिन दिल्ली स्थिति एक निजी चैनल में कार्यरत पत्रकार-कवि ने जो की निशंक के करीबी माने जा रहे है…ने निशंक को इस स्टिंग की सारी जानकारी निशंक को दी और जिसकी एवज में मुख्यमंत्री निशंक से कई लाभ मिले है….उनका कहना था की इस पत्रकार ने इस स्टिंग के जानकारी निशंक को देने के एवज में लाखों रुपये की डील की है….
इस तरह देखा जाए तो यह निलम्बन डा; निशंक के प्रति भलमनसाहत दिखाने का नतीजा माना जा सकता है परन्तु डा; निशंक अपने समर्थकों के प्रति इस तरह की रणनीति के प्रति अंजान से बने हुए हैं, ऐसा क्यों, यह तो वहीं जाने परन्तु भविष्य के लिए यह अच्छे संकेत नहीं हैं,
वहीं सूत्रों का तो यह भी कहना है कि स्टर्डिया मामले में कोर्ट की टिप्पणी मात्र का विरोधियों का इंतजार था, साम, दाम, दण्ड, भेद की रणनीति अपनायी गयी थी, प्रतिद्वंद्वी लोग येन-केन-प्रकारेण स्टर्डिया मामले में कोर्ट की प्रतिकूल टिप्पणी के उपरांत विदाई करवाने की तैयारी में थे, बस, नागपुर के सिर हिलाने की बारी रह गयी थी, परन्तु यहां भी कोर्ट से लेकर नागपुर तक प्रखर समर्थकों की रणनीति काम आयी, और रास्ता अनुकूल हुआ, परन्तु मान्यवर इन सब को शायद बिसरा चुके हैं, जिससे समर्थक कलमकार हताश, निराश से दिख रहे हैं,
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