Tuesday, November 16, 2010

एक मां के बेटे को चार कंधे वाले भी न मिले

एक मां के बेटे को चार कंधे वाले भी न मिले
भोपाल, 15 नवंबर 2010 (मप्र ब्यूरो)। मानवता को दरकिनार करते हुए एक मां के बेटे को चार कंधे वाले भी नहीं मिले। यह दुखद हादसा भोपाल की रचना नगर कालोनी में हुआ, जहां एक युवक की मौत हो जाने पर उसके पड़ोसी अर्थी बनाने व विश्राम घाट तक ले जाने के लिए नहीं पहुंचे। इस पीड़ित परिवार का `जन संवेदना´ सहारा बनी जहां उसे शव वाहन के माध्यम से सुभाष नगर विश्रामघाट लेकर गए और मृतक युवक का विद्युत शवदाह गृह में अन्तिम संस्कार किया गया। रिश्ते के एक-दो परिजन मृतक युवक के घर पहुंचे थे किन्तु उन्होंने भी अपने रिश्तेदारों व परिचितों को अन्तिम संस्कार के लिए सहायता देेने का विचार तक नहीं किया।
जन संवेदना (मानव सेवा में समर्पित संस्था) द्वारा पांच वर्ष पूर्व एक अभियान प्रारम्भ किया था जिसमें कहा गया था कि पड़ोसी से सम्बंध बनाओ पता नहीं किस मोड़ पर पड़ोसी की सहायता लेना पड़े। मृतक युवक का नाम जितेन्द्र सिंह था। उसके पिता की कुछ वर्ष पूर्व मृत्यु हो चुकी है। परिवार में मात्र अब मां ही बची हैं। इस रोती मानवता के बीच जन संवेदना पीड़ित मां को उसके बेटे को वापिस तो नहीं ला सकती, लेकिन दु:ख की इस घड़ी में सान्त्वना व्यक्त करते हुए ईश्वर से प्रार्थना करती है कि मां को यह संकट झेलने की शक्ति प्रदान करें।
``कहां सुनाए शिकवे व गिले,
एक बेटे को चार कंधे भी न मिले।
यही बेटा पहले तरसा अस्पताल में भर्ती होने को,
फिर अन्त में उसे इन्तजार रहा, कोई आये अर्थी उठाने को।´´
इसलिए जन संवेदना का नारा है- ``पड़ोसी सबसे पहले हमें प्यारा है।´´
- आर.एस. अग्रवाल

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