Tuesday, November 30, 2010

भारत सरकार के ‘ऑपरेशन ग्र्रीन हंट’ की निंदा की गई है।


नेपाली माओवादी पार्टी ने नक्सलियों के खिलाफ एक वर्ष पूर्व शुरू किए गए भारत सरकार के अभियान ‘ऑपरेशन ग्रीन हंट’ की निंदा करते हुए आधिकारिक तौर पर प्रतिक्रिया जताई हैं। गौरतलब है कि भारत कई बार नेपाली माओवादियों पर नक्सलियों की मदद करने का आरोप लगा चुका है लेकिन हर बार माओवादी इससे इनकार करते रहे हैं। हालांकि नक्सलियों के साथ नेपाली माओवादियों की सहानुभूति ऐसे समय में सामने आई है, जब भारतीय नक्सलियों पर चुप्पी साधने के लिए माओवादी प्रमुख पुष्प कमल दहल प्रचंड को पार्टी बैठक में आक्रोश का सामना करना पड़ा।
‘ऑपरेशन ग्रीन हंट’ की निंदा
शनिवार को पश्चिमी नेपाल के एक दूरवर्ती गांव में खत्म हुई माओवादी पार्टी की सप्ताह भर लंबी आम बैठक में औपचारिक रूप से भारत सरकार के ‘ऑपरेशन ग्र्रीन हंट’ की निंदा की गई है। यह अभियान भूमिगत नक्सलियों को बाहर निकालने के लिए देश के पांच राज्यों में नवंबर 2009 में शुरू किया गया था। बैठक में आरोप लगाया गया कि भारत ऑपरेशन ग्रीन हंट के नाम पर नागरिकों का उत्पीड़न कर रहा है। 14 सूत्रीय बयान में चेरुकुरी राजकुमार उर्फ आजाद की ‘अनैतिक’ और ‘सुनियोजित’ हत्या की भी आलोचना की गई है। चेरुकुरी राजकुमार नक्सलियों का प्रवक्ता था। पार्टी ने भारत सरकार से नक्सलियों के साथ शांतिपूर्ण ढंग से समस्या के समाधान की भी अपील की है।
नेपाली माओवादियों का रुख शुरुआत से ही भारत विरोधी रहा है। माओवादी 1996 में शुरू किए गए अपने दस वर्ष लंबे संघर्ष के दौरान 1950 में हुई भारत-नेपाल शांति और मित्रता संधि समेत अन्य समझौतों को खत्म करने की मांग करते रहे हैं। इसके अलावा माओवादी भारतीय सैनिकों की वापसी और देश में कार्यरत भारतीय कंपनियों को हटाने के खिलाफ प्रदर्शन करते रहे हैं।
बैठक अनिश्चितता के बीच समाप्त
बैठक में माओवादियों के भावी रणनीति तैयार किए जाने की संभावना थी, लेकिन प्रचंड और उनके दो सहायकों के बीच उभरे मतभेद के कारण बैठक अनिश्चितता के बीच समाप्त हो गई। घरेलू प्रतिक्रियावादी ताकतों और विदेशी हस्तक्षेप के कारण नए संविधान के मई 2011 तक लागू नहीं हो पाने की स्थिति में प्रचंड नए विद्रोह की घोषणा कर सकते हैं। माओवादी हालांकि पिछले वर्ष प्रचंड की सरकार गिरने, जन समर्थन हासिल करने और सत्ता में वापसी के प्रयास विफल होने के बाद से ही एक नए जन संघर्ष की वकालत कर रहे हैं। इस आम बैठक में लगभग 20,000 माओवादी लड़ाकों के महत्वपूर्ण मुद्दों को नहीं निपटाया जा सका। इन लड़ाकों को शांति समझौता होने के चार वर्ष बाद भी मुक्त नहीं किया जा सका है। दिक्कत यह है कि जब तक माओवादियों की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को भंग नहीं कर दिया जाता, तब तक नए संविधान की घोषणा किए जाने को लेकर अन्य पार्टियां राजी नहीं हैं। पीएलए के पुनर्वास के लिए फिलहाल 50 दिन से भी कम समय शेष है, क्योंकि पीएलए की निगरानी करने वाली संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी ने नेपाल से जाने की तैयारी शुरू कर दी है।

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