Thursday, November 18, 2010

सही कसर गैर-भाजपाई विपक्ष पूरी कर देता है।


Posted by सुरेश चिपलूनकर on Noरही-सही कसर गैर-भाजपाई विपक्ष पूरी कर देता है। गैर-भाजपाई विपक्ष यानी प्रमुखतः वामपंथी और क्षेत्रीय दल… इन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि कांग्रेस क्या कर रही है, क्यों एक ही परिवार के आसपास सत्ता घूमती रहती है, महाराष्ट्र का भ्रष्ट मुख्यमंत्री संवैधानिक रुप से अपना इस्तीफ़ा लेकर प्रधानमंत्री के पास न जाते हुए सोनिया के पास क्यों जाता है? करोड़ों (अब तो बहुत छोटा शब्द हो गया है) अरबों के घोटाले हो रहे हैं… लेकिन इस निकम्मे और सीमित जनाधार वाले गैर-भाजपाई विपक्ष का मुख्य काम है किस तरह भाजपा को रोका जाये, किस तरह हिन्दुत्व को गाली दी जाये, किस तरह नरेन्द्र मोदी के प्रति अपने “फ़्रस्ट्रेशन” को सार्वजनिक किया जाये। इस गैर-भाजपाई विपक्ष को एक भोंदू युवराज, प्रधानमंत्री के रुप में स्वीकार है लेकिन भाजपा का कोई व्यक्ति नहीं। इसी से इनकी प्राथमिकताएं पता चल जाती हैं। कलमाडी, चव्हाण और अब राजा, अरबों के घोटाले हुए… लेकिन कभी भी, किसी में भी सोनिया-राहुल का नाम नहीं आया, क्या इतने “भयानक” ईमानदार हैं दोनों? जब सभी प्रमुख फ़ाइलें और निर्णय सोनिया-राहुल की निगाह और स्वीकृति के बिना आगे बढ़ नहीं सकतीं तो कोई मूर्ख ही ऐसा सोच सकता है कि इन घोटालों में से “एक बड़ा हिस्सा” इनके खाते में न गया हो… लेकिन “मदर इंडिया” और “पप्पू” तरफ़ किसी ने उंगली उठाई तो वह देशद्रोही कहलायेगा।

कुछ और बातें हैं जो आये दिन सुनने-पढ़ने में आती हैं, परन्तु उनके बारे में सबूत या पुष्टि करना मुश्किल है, इनमें से कुछ अफ़वाहें भी हैं… लेकिन यह तो भाजपा का काम ही है कि ऐसी खबरों पर अपना खुफ़िया तन्त्र सक्रिय और विकसित करे ताकि कांग्रेस को घेरा जा सके, लेकिन भाजपा वाले ऐसा करते नहीं हैं, पता नहीं क्या बात है?

उदाहरण के तौर पर – जब कांग्रेसियों ने हजारों भारतीयों के हत्यारे वॉरेन एण्डरसन को छोड़ा, उसी के 6 माह बाद राजीव गाँधी की अमेरिका यात्रा के दौरान, आदिल शहरयार नामक व्यक्ति को अमेरिका में छोड़ा गया जो कि वहाँ हथियार तस्करी और फ़्राड के आरोपों में जेल में बन्द था। आदिल शहरयार कौन? जी हाँ… मोहम्मद यूनुस के सपूत। अब यह न पूछियेगा कि मोहम्मद यूनुस कौन हैं… मोहम्मद यूनुस वही एकमात्र शख्स हैं जो संजय गाँधी की अंत्येष्टि में फ़ूट-फ़ूटकर रो रहे थे, क्यों, मुझे तो पता नहीं? भाजपा के नेताओं को तो पता होगा, आज तक उन्होंने कुछ किया इस बारे में? क्या एण्डरसन की रिहाई के बदले में आदिल को छोड़ना एक गुप्त अदला-बदली सौदा था? और राजीव गाँधी को आदिल से क्या विशेष प्रेम था? क्योंकि जिस तरह से एण्डरसन के सामने मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वागत में बिछे जा रहे थे, उससे तो यह खेल दिल्ली की सत्ता द्वारा ही खेला गया प्रतीत होता है।

इसी प्रकार संजय गाँधी एवं माधवराव सिंधिया दोनों की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु भी रहस्य की परतों में दबी हुई है, आये दिन इस सम्बन्ध में अफ़वाहें उड़ती रहती हैं कि सिंधिया के साथ उस फ़्लाइट में, मणिशंकर अय्यर और शीला दीक्षित भी जाने वाले थे, लेकिन अन्तिम क्षणों में अचानक दोनों किसी काम के कारण साथ नहीं गये। माधवराव सिंधिया की सोनिया से दोस्ती लन्दन से ही थी, जो कि राजीव की शादी के बाद भी कायम रही… लेकिन राजेश पायलट के साथ-साथ कुमारमंगलम, राजशेखर रेड्डी और जीएमसी बालयोगी… सभी युवा, ऊर्जावान और कांग्रेस में “उच्च पद के दावेदार” नेताओं की दुर्घटना में मौत हुई… कैसा गजब का संयोग है, भले ही यह अफ़वाहें ही हों, लेकिन कभी भाजपाईयों ने इस दिशा में कुछ खोजबीन करने की कोशिश की? या कभी इस ओर उंगली उठाई भाजपाईयों ने?

एक बात और है जो कि अफ़वाह नहीं है, बल्कि दस्तावेजों में है, कि जिस वक्त सोनिया गाँधी (1974 में) इटली की नागरिक थीं, वह भारत की सरकारी कम्पनी ओरियंटल इंश्योरेंस की बीमा एजेण्ट भी थीं और प्रधानमंत्री कार्यालय में काम कर रहे अधिकारियों के बीमे दबाव देकर करवाती थीं, साथ ही वह इन्दिरा गाँधी के सरकारी आवास को अपने कार्यालय के पते के तौर पर दर्शाती थी, यह साफ़-साफ़ “फ़ेरा कानून” के उल्लंघन का मामला है (यानी एक तो विदेशी नागरिक, फ़िर भी भारतीय सरकारी कम्पनी में कार्यरत और ऊपर से प्रधानमंत्री निवास को अपना कार्यालय बताना… है किसी में इतना दम?) भाजपा वालों ने कभी इस मुद्दे को क्यों अखबारों में नहीं उठाया?

तात्पर्य यह है कि कांग्रेसी तो अपना “काम”(?) बखूबी कर रहे हैं, टीवी पर सिखों का हत्यारा जगदीश टाइटलर संघ को गरिया रहा था… हज़ारों मौतों से सने एंडरसन को देश से बाहर भगाने वाले लोग सुदर्शन के पुतले जला रहे थे… अरुंधती के देशद्रोही बयानों पर लेक्चर झाड़ने वाले लोग सुदर्शन को देशद्रोही बता रहे थे (मानो सोनिया ही देश हो)… IPL, गेहूं, कॉमनवेल्थ, आदर्श, 2G स्पेक्ट्रम जैसे महाघोटाले करने वाले भ्रष्ट और नीच लोग, RSS को देशभक्ति का पाठ पढ़ा रहे थे… तात्पर्य कि अपने “पैगम्बर” (उर्फ़ सोनिया माता) के कथित अपमान के मामले में कांग्रेसी अपना “असली चमचा रंग” दिखा रहे थे, परन्तु सबसे बड़ा सवाल यही है कि भाजपा के बड़े नेता क्या कर रहे थे? इतने राज्यों में सरकारें, लाखों कार्यकर्ताओं के होते हुए भी तत्काल “माफ़ी की मुद्रा” में क्यों आ गये? कहाँ गई वो रामजन्मभूमि आंदोलन वाली धार? क्या सत्ता की मलाई ने भाजपा नेताओं को भोथरा कर दिया है? लगता तो ऐसा ही है…

गोविन्दाचार्य जैसे वरिष्ठ सहित कई लोगों ने सुदर्शन जी को गलत ठहराया है, मेरे पिछले लेख में भी काफ़ी असहमतियाँ दर्शाई गईं, नैतिकता और सिद्धान्तों की दुहाईयाँ भी सुनी-पढ़ीं… परन्तु अभी भी मेरा व्यक्तिगत मत यही है कि सुदर्शन जी सही थे। खैर… मेरी औकात न होते हुए भी, अन्त में भाजपा नेताओं को सिर्फ़ एक क्षुद्र सी सलाह देना चाहूंगा कि, कांग्रेस के साथ किसी भी किस्म की रियायत नहीं बरतनी चाहिये, किसी किस्म के मधुर सम्बन्ध नहीं एवं सतत “शठे-शाठ्यम समाचरेत” की नीति का पालन हो…।

जैसा कि ऊपर मीडिया के अन्तर्सम्बन्धों के बारे में लिखा है… सच यही है कि भारत देश संक्रमण काल से गुज़र रहा है, “वोट आधारित सेकुलरिज़्म” की वजह से कई राज्यों में परिस्थितियाँ गम्भीर हो चुकी हैं, कई संदिग्ध कारणों की वजह से मीडिया हिन्दुत्व विरोधी हो चुका है… जबकि देश की 40% से अधिक जनसंख्या युवा हैं जिनमें “सच” जानने की भूख है… अब इन्हें कैसे “हैण्डल” करना है यह सोचना वरिष्ठों का काम है…
vember 18, 2010 in चौथा खंभा |

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