Thursday, November 18, 2010

सुदर्शन प्रकरण : मीडिया का रोल तथा भाजपाई कमज़ोरियाँ…

Posted by सुरेश चिपलूनकर on November 18, 2010 in चौथा खंभा |
सुदर्शन प्रकरण ने फ़िर से इस बात को रेखांकित किया है कि या तो संघ का अपना खुद का टीवी चैनल और विभिन्न राज्यों में 8-10 अखबार होने चाहिये, या फ़िर वर्तमान उपलब्ध मीडियाई भेड़ियों को वक्त-वक्त पर “समयानुसार कभी हड्डी के टुकड़े और कभी लातों का प्रसाद” देते रहना चाहिये। संघ से जुड़े लोगों ने गत दिनों सुदर्शन मसले के मीडिया कवरेज को देखा ही होगा, एक भी चैनल या अखबार ने सोनिया के खिलाफ़ एक शब्द भी नहीं कहा, किसी अखबार ने सोनिया से सम्बन्धित किसी भी पुराने मामले को नहीं खोदा… जिस तरह मुकेश अम्बानी के खिलाफ़ कुछ भी नकारात्मक प्रकाशित/प्रसारित नहीं किया जाता, उसी प्रकार सोनिया-राहुल के खिलाफ़ भी नहीं, ऐसा लगता है कि आसमान से उतरे देवदूत टाइप के लोग हैं ये… लेकिन ऐसा है नहीं, दरअसल इन्होंने मीडिया और सांसदों (अब विपक्ष भी) को ऐसा साध रखा है कि बाकी सभी के बारे में कुछ भी कहा (बल्कि बका भी) जा सकता है लेकिन “पवित्र परिवार” के विरुद्ध नहीं। जब जयललिता और दयानिधि मारन जैसों के अपने मालिकाना टीवी चैनल हो सकते हैं, तो संघ या भाजपा के हिन्दुत्व का झण्डा बुलन्द करने वाला कोई चैनल क्यों नहीं बनाया जा सकता? भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने कभी सोचा है इस बारे में?

मीडिया के अन्तर्सम्बन्धों और उसके हिन्दुत्व विरोधी मानसिकता के सम्बन्ध में एक पोस्ट लिखी थी “मीडिया हिन्दुत्व विरोधी क्यों है… इन रिश्तों से जानिये”, इसी बात को आगे बढाते हुए एक अपुष्ट सूचना है (जिसकी पुष्टि मैं अपने पत्रकार मित्रों से चाहूंगा) – केरल की लोकप्रिय पत्रिका मलयाला मनोरमा के निदेशक थॉमस जैकब के पुत्र हैं अनूप जैकब, जिनकी पत्नी हैं मारिया सोहेल अब्बास। मारिया सोहेल अब्बास एक पाकिस्तानी नागरिक सोहेल अब्बास की पुत्री हैं, अब पूछिये कि सोहेल अब्बास कौन हैं? जी हाँ पाकिस्तानी खुफ़िया एजेंसी ISI के डिप्टी कमिश्नर, इनके परम मित्र हैं मिस्टर सलाहुद्दीन जो कि हाफ़िज़ सईद के आर्थिक मैनेजर हैं, तथा मारिया सोहेल अब्बास हाफ़िज़ सईद के दफ़्तर में काम कर चुकी हैं…। यदि यह सूचनाएं वाकई सच हैं तो आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि स्थिति कितनी गम्भीर है और हमारा मीडिया किस “द्रोहकाल” से गुज़र रहा है।

भाजपा नेताओं को यह भी सोचना चाहिये कि पिछले 10 साल में सोनिया ने इक्का-दुक्का “चहेते” पत्रकारों को मुश्किल से 2-3 इंटरव्यू दिये होंगे (स्वाभाविक है कि इसका कारण उनके बहुत “सीमित ज्ञान की कलई खुलने का खतरा” है), (राहुल बाबा का ज्ञान कितना है यह नीचे दिये गये वीडियो में देख सकते हैं…) राहुल बाबा भी प्रेस कांफ़्रेंस में उतना ही बोलते हैं जितना पढ़ाया जाता है (यानी इन दोनों की निगाह में मीडिया की औकात दो कौड़ी की भी नहीं है) फ़िर भी मीडिया इनके पक्ष में कसीदे क्यों काढ़ता रहता है… सोचा है कभी? लेकिन भाजपाईयों को आपस में लड़ने से फ़ुरसत मिले तब ना… और “हिन्दू” तो खैर कुम्भकर्ण हैं ही… उन्हें तो यह पता ही नहीं है कि इस्लामिक जेहादी और चर्च कैसे इनके पिछवाड़े में डण्डा कर रहे हैं, कहाँ तो एक समय पेशवा के सेनापतियों ने अफ़गानिस्तान के अटक तक अपना ध्वज लहराया था और अब हालत ये हो गई है कि कश्मीर, असम, उत्तर-पूर्व में नागालैण्ड, मिजोरम में आये दिन हिन्दू पिटते रहते हैं… केरल और पश्चिम बंगाल भी उसी राह पर हैं… लेकिन जब हिन्दुओं को घटनाएं और तथ्य देकर जगाने का प्रयास करो तो ये जागने से न सिर्फ़ इंकार कर देते हैं, बल्कि “सेकुलरिज़्म” का खोखला नारा लगाकर अपने हिन्दू भाईयों को ही गरियाते रहते हैं। पाखण्ड की इन्तेहा तो यह है कि एक घटिया से न्यूज़ चैनल पर किसी भीड़ द्वारा तोड़फ़ोड़ करना अथवा शिवसेना द्वारा शाहरुख खान का विरोध करना हो तो, सारे सियार एक स्वर में हुँआ-हुँआ करके “फ़ासिस्ट-फ़ासिस्ट-फ़ासिस्ट” का गला फ़ाड़ने लगते हैं, अब वे बतायें कि संघ कार्यालयों पर कांग्रेसियों के हमले फ़ासिस्टवाद नहीं तो और क्या है?

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