Tuesday, November 30, 2010

अमेरिका की कथनी और करनी में फर्क का एक और बड़ा खुलासा हुआ है।


आतंकवाद पर दोहरे मापदंड का नमूना पेश करते रहे अमेरिका की कथनी और करनी में फर्क का एक और बड़ा खुलासा हुआ है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में स्थायी सदस्यता के भारत के दावे पर मुहर लगाकर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भले ही इसी माह लौटे हों, लेकिन उनकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन की राय इस मामले में ठीक उनके विपरीत ही है। हिलेरी का मानना है कि स्थायी सदस्यता की दौड़ में भारत खुद को अपने आप ही मजबूत दावेदार बता रहा है।

दोहरे मापदंड को बेनकाब कर दिया
‘विकिलीक्स’ के पिटारे से निकले इस खुलासे ने यूएनएससी सुधार को लेकर भारत की मुहिम पर अमेरिका के दोहरे मापदंड को बेनकाब कर दिया है। इसके अनुसार, पिछले साल 31 जुलाई को क्लिंटन ने भारत समेत 33 मुल्कों में तैनातअमेरिकी राजदूतों को टेलीग्राम भेजकर संयुक्त राष्ट्र सुधारों को अहम मुद्दा बताया था और कहा था कि स्थायी सदस्यता की दौड़ में भारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान खुद ही अपने को प्रमुख दावेदार बता रहे हैं। ताजा खुलासे से भारतीय खेमे में खलबली है। अमेरिका के साथ मजबूत होते रिश्तों पर खुलासे की आंच न पड़े, इसलिए विदेश मंत्रालय अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा।

ओबामा की टिप्पणी इसी माह की
दूसरी ओर, मंत्रालय के अधिकारियों ने सफाई देनी शुरू कर दी है। अनौपचारिक चर्चा में अधिकारी कह रहे हैं कि संयुक्त राष्ट्र में भारत की मंजिल को लेकर हिलेरी के विचार पिछले साल के हैं और ओबामा की टिप्पणी इसी माह की। अमेरिकी राष्ट्रपति की टिप्पणी अमेरिकी नीति में बदलाव का संकेत करती है जो भारत के समर्थन में है। वैसे, मंत्रालय के कुछ अफसरों का यह भी कहना है कि भारत की स्थायी सदस्यता पर ओबामा के बयान में चाहे दो टूक समर्थन हो, लेकिन इस खुलासे के बाद अमेरिका की नीयत का ठीक से आकलन होना चाहिए। इन अफसरों ने ओबामा के समर्थन के ऐलान के चंद रोज बाद ही व्हाइट हाउस के प्रवक्ता के उस बयान का संदर्भ दिया है, जिसमें कहा गया था कि यूएनएसी में भारत की मंजिल अभी दूर की कौड़ी है।
प्रस्तुतकर्ता रामदास सोन

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