Wednesday, November 10, 2010

अरब की रेतीली जमी पर महकेगी वतन की माटी की खुशबू

अरब की रेतीली जमी पर महकेगी वतन की माटी की खुशबू
भोपाल 10 नवम्बर 2010। दूर देश में दो गज जिस जमीं के लिये मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर तरसे थे, उसी वतन की माटी की खुशबू अब अरब की रेतीली जमीन पर महकेगी। आदिम जाति महकमे के मंत्री कुंवर विजयशाह के सपनों को गांव आंवलिया में बन रहे माटी के इत्र ने साकार रूप दिया है । इस गांव को कुवैत से सप्लाई का आर्डर मिला है। सतपुड़ा के जंगलों में बसे इस वनग्राम की माटी की महिमा ऐसी है कि इसमें इत्र बनाया जा रहा है। वन विभाग के सहायक वन संरक्षक आर.के.मिश्रा ने मंत्री विजयशाह की इस अविश्वसनीय सी संकल्पना को अपने दृढ़ इरादों से मूर्त रूप दिया है।
लघु वनोपज संघ खंडवा को कुवैत की फर्म मोहम्मद यूसूफ बेह-बेहानी से 50 किलो माटी के इत्र की सप्लाई का आर्डर मिला है। अनुबंध पत्र भरा जा चुका है। वनग्राम आंवलिया में बने इस इत्र निर्माण इकाई को 15 लाख रूपये की आय इस सप्लाई अनुबंध से मिलेगी। मई 2011 तक यह सप्लाई करनी है।
मंत्री विजयशाह को अपने विधानसभा क्षेत्र के एक दूसरे वन गांव भोजूढाना की माटी में सुगंध होने की जानकारी मिली थी। उन्होंने स्वयं इसका सत्यापन किया। बड़े जतन से उन्होंने योजना बनाई और जब वे वनमंत्री थे, तब उन्होंने आंवलिया गांव में 15 लाख की लागत से यहां इत्र निर्माण इकाई की स्थापना की। यहां माटी के साथ-साथ गुलाब और मोगरा से भी इत्र बनाने का काम चल रहा है। फूलों की खेती के लिये वनवासियों को प्रशिक्षण दिया गया और अब यहां गुलाब और मोगरा से निकली खुशबू भी चमन को महका रही है।
इत्र निर्माण की प्रक्रिया में माटी को पकाने के बाद तांबे के बड़े-बड़े देग में उबाला जाता है। आसवन द्वारा उबाली गई माटी की खुशबू को बेस आइल के साथ संघनित किया जाता है। बेस आइल में माटी की सौंधी-सौंधी खुशबू समा जाती है। इसे पैक कर इत्र का रूप दिया जाता है।
आंवलिया में मिट्टी से बनने वाला यह इत्र नॉन अल्कोहलिक है। यह विशुद्ध हर्बल श्रेणी का है जिसे बनाने में अन्य इत्रों की तरह स्प्रिीट का उपयोग नहीं होता। ऐसा इत्र उत्तरप्रदेश के कन्नौज के आसपास भी बनाया जाता है। परंतु आंवलिया का माटी का यह इत्र गुणवत्ता में अधिक श्रेष्ठ है। इसका उपयोग एरोमा थेरेपी में भी हो सकता है।
आंवलिया के आसपास फूलों की खेती बढ़ाने की कोशिश की जा रही है। गुलाब मोगरा, गेंदा, मेंहदी, दोंगला (नागरमोथा) और खस की खेती के लिये वनवासियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। आंवलिया का यह इत्र संयंत्र शीघ्र ही व्यावसायिक उत्पादन करने लगेगा।
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने भी वनवासी सम्मान यात्रा के दौरान इस यूनिट का अवलोकन कर इसकी सराहना की थी। आंवलिया के वनवासी दूर देश में अपने गांव की माटी की गंध बिखरने की टक्कर में उत्साहित और रोमांचित है।


Date: 10-11-2010 Time: 16:06:08

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