Monday, November 29, 2010

दिल्ली-समलैंगिक-रैली


अनूठे अंदाज, गाने, बाजे और नारों के साथ दुनिया भर से आए समलैंगिक लोग और इनके समर्थक समलैंगिता को कानूनी जामा पहनाने और उसे सामाजिक स्वीकृति दिलाने के लिए एक बार फिर दिल्ली में इकट्ठे हुए।

रैली में लोगों का कहना था कि ये एक प्राकृतिक कृत्य है और आजाद देश में हर व्यक्ति को राजनीतिक आजादी के साथ-साथ सेक्सुअल आजादी भी चाहिए। यानी इन्हें समलैंगिक संबंधों के लिए कोई भी बंदिश मंजूर नहीं।

मध्यप्रदेश से आए एमबीए के विद्यार्थी करण कहते हैं, 'मैं एक छोटे शहर से हूँ और समलैंगिक हूँ। बड़े शहरों में तो इसके प्रति जागरूगता है लेकिन छोटे शहरों में अब भी लड़ाई जारी है।'

दिल्ली में जुटे समलैंगिकों में न सिर्फ युवक युवतियाँ, बल्कि अनेक उम्रदराज लोग भी पूरे जोशोखरोश के साथ हिस्सा ले रहे थे। यही नहीं, कुछ समलैंगिक लोगों के परिवार वाले भी उनके समर्थन में मौजूद थे। पंजाब से आए एक ऐसे ही एक व्यक्ति हैं- संभव।

उनके परिवार से उनकी इस इच्छा का समर्थन करने न सिर्फ उनकी बुजुर्ग दादी आई थीं बल्कि उनकी माँ और उनके भाई-बहन भी रैली में शामिल थे।

समस्या : उनकी दादी ने अपने आने की वजह बताई, 'मेरे पोते ने बताया कि वो समलैंगिक है, तो हमने इस सत्य को स्वीकार किया और अगर हम ऐसा नहीं करते तो वो कुछ भी कर सकता था। उसे अपना जीवन जीने का पूरा अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट और समाज को भी चाहिए कि उसे उसका अधिकार दें।'

वैसे तो रैली में आए ज्यादातर लोगों का कहना था कि वे समलैंगिक हैं, लेकिन अधिकांश लोग तस्वीरें खिंचवाने और मीडिया के सामने आने से परहेज कर रहे थे।

हालाँकि बहुत से लोग ऐसे थे जो रंग-बिरंगी पोशाकों में मीडियाकर्मियों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे। इनके समर्थन में कुछ बुद्धिजीवी भी थे जो अपनी माँगों को कविता के जरिए व्यक्त कर रहे थे।

इन सबसे अलग रैली में बड़ी देर से बाँसुरी बजा रहे स्वामी शनि से मेरी मुलाकात हुई। उनका कहना था कि समलैंगिकता अपनाइए लेकिन सुरक्षित तरीके से ताकि एड्स जैसी बीमारियाँ न फैलने पाएँ।

बहरहाल सैकड़ों समलैंगिक इस रैली को लेकर काफी उत्साहित थे और उन्हें पूरा विश्वास था कि आने वाले दिनों में उनके अभियान में न सिर्फ हजारों लोग शामिल होंगे बल्कि वे इसे सामाजिक स्वीकृति दिलाने में भी कामयाब हों

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