Monday, November 29, 2010

यौन शोषण: क्या सिर्फ पुरूष ही होते हैं दोषी ?


यौन शोषण: क्या सिर्फ पुरूष ही होते हैं दोषी ?

नोट: यदि आप यह मानते हैं कि शोषण करना सिर्फ पुरूषों का मौलिक अधिकार है, तो कृपया इस को न पढ़ें।

सबसे पहले मैं यह क्लियर कर दूँ कि मैं न तो कोई नारीवादी हूँ और न ही नारी विरोधी। अगर आप 'तस्लीम' पर मेरे पूर्व लेखों को पढ़ते रहे हैं, तो शायद यह समझ पाएँ हों कि जो भी कुछ गलत होता है, अन्यायपूर्ण होता है, उसके विरोध में लिखना मेरी प्रवृत्ति है। यदि आप इसी भावना से यह लेख पढ़ते हैं, तभी इस लेख की मूल भावना को समझ पाएँगे।
तो अब आते हैं अपने मुद्दे पर। क्या सिर्फ पुरूष ही यौन शोषण के दोषी होते हैं?


हालाँकि यह आम धारणा है कि पुरूष स्वभावत: अधिपत्यवादी होते हैं और जो भी व्यक्ति, वस्तु अथवा सम्पत्ति उसके सम्पर्क में आती है, वे उसपर पूर्ण अधिकार करने के लिए उतावले हो जाते हैं। वैसे यह धारणा सर्वथा अनुचित भी नहीं है। मेरी नजर में इसका कारण है पुरूषों को विकासक्रम में मिला जीन का पारम्परिक ढ़ाँचा, और उसकी परवरिश का सामाजिक ताना-बाना। लेकिन यह व्यवहार सिर्फ पुरूषों की बपौती नहीं रहा है। महिलाओं ने सभी क्षेत्रों में पुरूषों की बराबरी के साथ ही साथ इस क्षेत्र में भी अपने कदम मजबूती से रख दिये हैं। अगर आपको मेरी बातों पर यकीन नहीं हो रहा है, तो इस सत्य घटना को ध्यान से पढ़ें:

मेरे एक मित्र हैं, जो एक सरकारी विभाग में सेक्सन अफसर के पद को विभूषित हैं। उनके सेक्सन में कुल पाँच लोग काम करते हैं, एक महिला व चार पुरूष। जैसे ही वे दूसरे सेक्शन से ट्रांस्फर होकर नए सेक्सन में पहुँचे, तो वहाँ पर उनका सामना एक ऐसी महिला कर्मचारी से हुआ, जो न तो समय से कभी आफिस आती थी और न नियत समय तक रूक कर काम ही करती थी। हमारे मित्रवर ठहरे नियम कानून के पक्के आदमी, अत: उन्होंने एक दो-बार डाँटा फटकारा। जब उस महिला ने देखा कि उसकी दाल ऐसे नहीं गलने वाली, तो उसने अपने दूसरे हथकंडे अपनाने लगी।
कभी वह अपने बॉस के लिए घर से उनकी पसंद का छोला चावल ले आती, तो कभी सूजी का हलवा। साथ ही साथ वह अपने बॉस के साथ कुछ अतिरिक्त निकटता भी दर्शाने लगी। हंसकर बातें करना, बॉस के केबिन में अपने ऊपरी वस्त्रों को लापरवाही से बिखरा देना और कभी-कभी जान बूझकर उनके हाथों को छू लेना।

हमारे मित्रवर भी कोई विश्वामित्र तो थे नहीं, सो उनके सारे नियम कानून धराशायी हो गये। वह महिला अपने पूर्व के नियमानुसार अपननी सुविधा के समय से आने और जाने लगी। इसपर उसके संगी-साथियों ने अपने बॉस से ऐतराज किया, तो मित्र महोदय ने पुन: उस महिला को कसना चाहा। इसपर उसने चंडी का रूप ले लिया और खुले आम अपने बॉस पर यौन शोषण का आरोप लगा दिया। अपने आरोप में उसने यहाँ तक कहा कि मेरे बॉस मुझे समय समय पर प्रताड़ित करते हैं और शारीरिक सम्बंध बनाने के लिए दबाव डालते हैं। हालत है कि मित्रवर को कार्यालय से निलम्बित कर दिया गया है और उनके खिलाफ जाँच चल रही है। जब से मुझे यह खबर मिली है, मैं सोच में पड़ गया हूँ और यह सवाल बराबर मेरे दिमाग में कौंध रहा है कि क्या यौन शोषण के लिए महिला दोषी नहीं हो सकती? अगर हाँ, जैसा कि इस केस में स्पष्ट है, तो इसके विरूद्ध पुरूष क्या कर सकता है? ऐसे मामले में उसके साथी-संगाती तो थोड़िए उनकी पत्नी तक उन्हें शक की निगाह से देखने लगी है और अब उन्हें अपने बच्चों से नजरें मिलाने में शर्म आने लगी है। क्या आप लोग बता सकते हैं कि इस विषय पर मेरे मित्र क्या कर सकते हैं?

यहाँ पर एक सवाल यह भी कि जब सरकार नारी यौन शोषण के लिए कड़े कदम उठाने जा रही है, तो क्या उसे इस तरह के मामलों के बारे में भी नहीं सोचना चाहिए? आप इस बारे में क्या सोचते हैं, कृपया अपने दुराग्रह से मुक्त विचारों को हमारे साथ अवश्य साझा करें। शायद आपके विचार मेरे मित्र की जिंदगी में नई रौशनी में मददगार हो सकें। प्रस्तुतकर्ता : ज़ाकिर अली 'रजनीश' source:http://ts.samwaad.com/

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