bhopal24=2=2011भोपाल। मध्यप्रदेश में किसानों के आत्महत्या करने के बढ़ते मामलों पर बुधवार को विपक्ष ने राज्य विधानसभा में चिंता जताई और कहा कि सरकार अगर मुस्तैद होती तो किसान आत्महत्या नहीं करते। गृह मंत्री की इस सफाई पर कि आत्महत्या की अधिकांश घटनाओं के पीछे बैंकों का कर्ज या फसल बिगड़ना वजह नहीं है, विपक्षी सदस्य एकदम उखड़ पड़े। उन्होंने पूछा, यदि सरकार अपना काम ठीक ढंग से कर रही है तो किसान मौत को गले क्यों लगा रहे हैं? उनका कहना था कि अभी भी घटनाएं हो रही हैं। किसानों को राहत नहीं मिल पा रही है। कई स्थानों पर मामूली राशि के चेक सौंपे जा रहे हैं, जिन्हें किसान स्वीकार नहीं कर रहे हैं।
मालूम हो कि राज्य में पिछले तीन माह के भीतर 89 किसान और 47 खेतिहर मजदूर आत्महत्या कर चुके हैं। इस मुद्दे पर कार्यवाहक नेता प्रतिपक्ष चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी की मांग पर आज सदन में स्थगन प्रस्ताव पर बहस हुई।
बहस में भाग लेने वाले सदस्य केन्द्र और राज्य सरकार की भूमिका को लेकर जब आपस में टोकाटाकी करने लगे तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को हस्तक्षेप कर कहना पड़ा कि तू-तू, मैं-मैं से किसानों का भला नहीं हो पाएगा। हमें सदन में रचनात्मक सुझाव देना होंगे। मगर बहस की शुरूआत ही ठीक नहीं हुई, जब कांग्रेस के वरिष्ठ सदस्य आरिफ अकील के एक शब्द पर स्पीकर ईश्वरदास रोहाणी ने आपत्ति कर उसे कार्यवाही से विलोपित करने का आदेश दे दिया। अकील इस पर नाराज हो गए और यह कहकर वाकआउट कर दिया कि उन्हें बोलने नहीं दिया जा रहा है। हालांकि सदन से बाहर निकलकर उन्होंने मीडिया से चर्चा करते हुए कहा कि अगर कटोरा असंसदीय शब्द है तो फिर विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी बताएं कि सही शब्द क्या है। केन्द्र से बार- बार मदद मागने से साफ है कि भाजपा सरकार अपने स्तर पर कोई काम नहीं कर रही और हर समस्या के लिए वह केन्द्र का दरवाजा खटखटाने लगती है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री किसी भी समस्या पर बार - बार कहते हैं, मैं हूं ना। लेकिन किसानों के मुआवजा वितरण में उनका यह डायलाग कहां गायब हो गया1
11इस विषय पर सदन में दिन भर बहस चली। कांग्रेस सदस्य एनपी प्रजापति का कहना था कि सरकार ने कहा था कि पन्द्रह दिन में फसलों को हुए नुकसान का आकलन कर लिया जाएगा, पर ऐसा हुआ नहीं। पांच सौ रूपए में तो बैंक खाता खुलता है और अनेक किसानों को छह और आठ सौ रूपए के चेक थमाए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री को खुद अनशन पर बैठने के बजाए अफसरों से कहना था कि यदि किसानों को समय पर राहत नहीं बंटी तो वे उनका अन्न-जल छुड़वा देंगे। कांग्रेस के ही डॉ गोविंद सिंह ने यह कहकर मुख्यमंत्री को निशाने पर लिया कि प्रजा को राजा के पाप भोगने पड़ते हैं। भाजपा सरकार पूंजीपतियों और व्यापारियों की चिंता करने में लगी रहती है। उसने घोषणा पत्र में किसानों से जो वादे किए थे, पूरे नहीं किए गए हैं। चाहे किसानों के 50 हजार तक की कर्ज माफी हो, दस हार्स पावर के पम्प पर सब्सिडी या डीजल पर टैक्स कम करने का वादा, भाजपा मुकर गई। किसानों की हालत खराब होती जा रही है और पिछले पांच सालों में 8 हजार 258 किसान आत्महत्या कर चुके हैं।
भारतीय जन शक्ति के लक्ष्मण तिवारी ने आरोप लगाया कि उनके रीवा जिले में मुआवजा वितरण दूर की बात है, सर्वे का काम ही अब तक पूरा नहीं हुआ है। कलेक्टर ने उन्हें खुद अपनी परेशानी बताई कि तहसीलदारों के 22 में से ग्यारह पद खाली पड़े हैं, इसलिए फसलों के नुकसान का आकलन कराने में वक्त लगेगा। तिवारी का सुझाव था कि राज्य और केन्द्र सरकार के विवाद में न पड़कर किसानों को राहत बांटने पर ध्यान दिया जाना चाहिए। कांग्रेस के रामनिवास रावत ने कहा कि छह नवम्बर से अब तक 97 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। कोई कारण है जो किसानों को यह कदम उठाने के लिए मजबूर कर रहा है। राज्य सरकार संवेदनशील होती तो समस्या का निदान करने के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाने की पहल कर सकती थी, किंतु उसने राजनीति करने का सहारा लिया।
चर्चा के दौरान ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव ने भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि प्रदेश में किसी किसान की मौत भूख या गरीबी के कारण नहीं हुई है। राज्य सरकार ने किसानों को राहत देने के लिए 900 करोड़ रूपए की व्यवस्था की है और 50 लाख लोगों को रोजाना 122 रूपए के हिसाब से रोजगार दिया जा रहा है। मगर प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के सदस्यों ने इसका श्रेय भारत सरकार की मनरेगा योजना का दिया तो सदन में शोरगुल बढ़ गया।
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