Monday, February 7, 2011

समूची भाजपा मां नर्मदा सामाजिक महाकुभ में डुबकी लगाकर अपने सारे पाप धोने के चक्कर में लगी हुई है?


समूची भाजपा मां नर्मदा सामाजिक महाकुभ में डुबकी लगाकर अपने सारे पाप धोने के चक्कर में लगी हुई है?



इन दिनों समूची भाजपा मां नर्मदा सामाजिक महाकुभ में डुबकी लगाकर अपने सारे पाप धोने के चक्कर में लगी हुई हैं। कुंभ शब्द को लेकर विवाद भी चल रहा हैं। भाजपा के संचालन सूत्रों को पर्दे के पीछे से संचालित करने वाले संघ की सुनियोजित रणनीति के तहत यह आयोजन किया जा रहा हैं। सन 1990 से लगातार 2004 तक लगातार मंड़ला संसदीय क्षेत्र से 6 चुनाव जीतने वाली भाजपा इस बार 2009 में हार गई हैं। प्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष ठा. हरवंश सिंह ने भी इस आयोजन केा आड़े हाथों लेते हुये प्रदेश सरकार और भाजपा को कठघरे में खड़ा किया है। दूसरी ओर बजरंग दल के नेता ने हरवंश सिंह पर आरोप लगाया है कि कुंभ के आयोजन की बैठक में वे स्वयं उपस्थित थे और उन्होंने ना केवल इस आयोजन की प्रशंसा की थी वरन अपने सुझाव भी दिये थे। यदि पूरी श्र्द्धा और धार्मिक भावना मात्र से यह आयोजन किया जाता और इसे कुंभ कहने के बजाय मां नर्मदा के नाम पर कोई नाम आयोजन का रख दिया जाता तो सभी भूरि भूरि प्रशंसा करते। ओला पाला पीड़ित किसानों और फिर प्रदेशाध्यक्ष सुरेश पचौरी के अनशन के समर्थन में जिला इंका द्वारा आयोजित धरना प्रदर्शन में विस उपाध्यक्ष हरवंश के आक्रमक भाषणों को लेकर सियासी हल्कों में चर्चाओं का दौर जारी है।संघ और प्रदेश सरकार हमला बोलकर वे आलाकमान के सामने यह दिखाने का प्रयास कर रहें है कि विस उपाध्यक्ष रहते हुये भी जब वे इतना आक्रमक हो सकते तो फिर प्रदेशाध्यक्ष या नेता प्रतिपक्ष बनकर कितने आक्रमक हो सकते हैंर्षोर्षो


विवादित कर डाला मां नर्मदा तट पर होने वाले आयोजन को भाजपा ने-इन दिनों समूची भाजपा मां नर्मदा सामाजिक महाकुभ में डुबकी लगाकर अपने सारे पाप धोने के चक्कर में लगी हुई हैं। कुंभ शब्द को लेकर विवाद भी चल रहा हैं। जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द जी सरस्वती महाराज के साथ ही राष्ट्रीय सन्त स्वामी प्रज्ञानानन्द महाराज सहित अनेक धर्मार्चायों ने इसे कुभ कहने पर आपत्ति की हैं। भाजपा के संचालन सूत्रों को पर्दे के पीछे से संचालित करने वाले संघ की सुनियोजित रणनीति के तहत यह आयोजन किया जा रहा हैं। सन 1990 से लगातार 2004 तक लगातार मंड़ला संसदीय क्षेत्र से 6 चुनाव जीतने वाली भाजपा इस बार 2009 में हार गई हैं। कांग्रेस के एक अदने से उम्मीदवार ने भाजपायी दिगग्ज फग्गन सिंह कुलस्ते को धराशायी कर दिया था। लगातार 19 साल तक विजयी पताका फहराने वाली भाजपा को तब ना तो मां नर्मदा कें प्रति ना तो भक्ति भाव जागृत हुआ और ना आदिवासी समाज की प्रगति का ही कोई ख्याल आया। लेकिन चुनाव हारने के बाद धार्मिक आयोजन की आड़ में अपने राजनैतिक हित को साधने के प्रयास को भांप कर अब राजनैतिक हल्कों में भी इसका विरोध होने लगा है। प्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष ठा. हरवंश सिंह ने भी इस आयोजन केा आड़े हाथों लेते हुये प्रदेश सरकार और भाजपा को कठघरे में खड़ा किया है। दूसरी ओर बजरंग दल के नेता ने हरवंश सिंह पर आरोप लगाया है कि कुंभ के आयोजन की बैठक में वे स्वयं उपस्थित थे और उन्होंने ना केवल इस आयोजन की प्रशंसा की थी वरन अपने सुझाव भी दिये थे। इस विज्ञप्ति में हरवंश सिंह को नास्तिक बताते हुये यह भी कहा गया था कि वे कभी कभी धार्मिक होने का पाखंड़ करते रहते है। लेकिन कोई कुछ भी कहते रहे भाजपा और संध इस आयोजन को पूरी तरह भुनाने के मूड में दिख रहे हैं। जैसे राम मन्दिर निर्माण के लिये जगह जगह से रामशिलायें एकत्रित करायी गईं थी वैसे ही अभी घर घर जाकर एक किलो चांवल, 100 ग्राम दाल और एक रुपये का सिक्का मां नर्मदा के नाम से लिया जा रहा हैंं। धर्म पे्रमी महिलायें सहज ही यह दे भी देती हैं। इसी तरह यदि शासकीय अमले में चल रही चर्चाओं को यदि सही माना जाये तो हर विभाग का चन्दे का लक्ष्य रख दिया गया हैं और उस आधार पर विभाग में काम करने वाले कर्मचारियों से वसूली भी की जा रही हैं। इसमें सर्वधर्म समभाव की तर्ज पर हिन्दू मुसलमान का भी कोई भेद नहीं किया जा रहा हैं। ना केवल मंड़ला जिले में वरन समूचे प्रदेश में इसी तरह वसूली किये जाने के चर्चे आम हैं। इसे कुभ कहा जाये या नहींर्षोर्षो इस विवाद में ना पड़ते हुये इतना तो जरूर कहा जा सकता हैं कि मां नर्मदा के नाम का उपयोग भी भगवान राम के तरह करने में भाजपा कोई परहेज नहीं कर रही हैं। इसलिये इस मां नर्मदा के तट पर भरने वाले भाजपायी सरकारी मेले का नाम तो दिया ही जा सकता हैं जिसके माध्यम से 19 साल बाद हुयी हार को जीत में बदलने को प्रयास किया जायेगा। कुछ लोगों को इसबात का भी भारी आश्चर्य हैं कि भाजप में सबसे बड़े मां नर्मदा के भक्त के रूप में पूर्व केन्द्रीय मन्त्री और राष्ट्रीय असंगठित मजदूर संघ के अध्यक्ष प्रहलाद पटेल माने जाते हैं। उन्होंने पैदल नर्मदा परिक्रमा भी की है। वे महाकौशल अंचल के जनाधार वाले नेता भी माने जाते है। नर्मदा के तट पर होने वाले इस आयोजन में प्रहलाद पटेल से परहेज भी लोगों की समझ से परे हैं। वैसे तो कहने वाले यह कहने से भी नहीं चूक रहें हैं कि भगवान राम तो मर्यादापुरषोत्तम कहलाते हैं जो सारी गिल्तयों को माफ भी कर देते है लेकिन शान्त रहने वाली जगत जननी मां नर्मदा जब अपने रौद्र रूप में आती हैं गिल्तयां करने वाले और पापों तथा पापियों को बहाकर भी ले जातीं हैं। यदि पूरी श्र्द्धा और धार्मिक भावना मात्र से यह आयोजन किया जाता और इसे कुंभ कहने के बजाय मां नर्मदा के नाम पर कोई नाम आयोजन का रख दिया जाता तो सभी भूरि भूरि प्रशंसा करते और महाकौशल के लिये यह गौरवपूर्ण आयेजन होता लेकिन धर्म के नाम पर राजनीति करने की आदी भाजपा ने इसे भी नहीं छोडा है।

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