Thursday, February 24, 2011
भारतीय संस्कृति में पत्रकारिता के मूल्य” विषय पर राष्ट्रीय संविमर्श
भारतीय संस्कृति में पत्रकारिता के मूल्य” विषय पर राष्ट्रीय संविमर्श
भोपाल 23 फरवरी। वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री मुजफ्फर हुसैन का कहना है कि पत्रकारिता एक भविष्यवेत्ता की तरह है जो यह बताती है कि दुनिया में क्या होने वाला है। वे यहां माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवम संचार विश्वविद्यालय,भोपाल के तत्वाधान में भारतीय संस्कृति में पत्रकारिता के मूल्य विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संविमर्श के दूसरे दिन समापन सत्र में अध्यक्ष की आसंदी से बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि आज सामाजिक मुद्दों से जुड़े समाचार मीडिया में अपनी जगह नहीं बना पा रहे हैं, इसके लिए जरूरत है कि पारंपरिक मीडिया का संवर्धन किया जाए। उन्होंने कहा कि एक आदमी की विचारधारा कभी भी संवाद का रूप नहीं ले सकती। तानाशाही में संवाद नहीं होता और संस्कृति लोकतंत्र को जन्म देती है। उन्होंन कहा कि संवाद रूकता है तो समाज मरता है, चलता है तो समाज सजीव होता है। उन्होंने कहा कि पत्रकारों का खबरों का चुनाव करते समय उसके प्रभाव को नहीं भूलना चाहिए।
सत्र के मुख्यवक्ता साधना न्यूज के समूह संपादक एनके सिंह ने कहा कि मीडिया पर बाजारवाद हावी है जिसके चलते सामाजिक मुद्दों की उपेक्षा हो रही है। जबकि कोई भी लोकतंत्र निरंतर संवाद से ही प्रभावी होता है। भारत में इलेक्ट्रानिक मीडिया का विकास बहुत नया है किंतु यह धीरे-धीरे परिपक्व हो जाएगा। उन्होंने कहा मीडिया को बदलना है तो दर्शकों को भी बदलना होगा क्योंकि जागरूक दर्शक ही इन रूचियों का परिष्कार कर सकते हैं। श्री सिंह ने देश के इतिहास में इतना कठिन समय कभी नहीं था जब पूरे समाज को दृश्य माध्यम जड़ बनाने के प्रयासों में लगे हैं। इसके चलते विवाह एवं परिवार नाम की संस्थाओं के सामने गहरा संकट उत्पन्न हो रहा है। इस सत्र में स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री नानाभाऊ माहोर एवं गोसंवर्धन बोर्ड के अध्यक्ष शिव चौबे ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि पूरे विश्व में मानव सभ्यता आज इस स्तर पर है कि मानव के अस्तित्व और भूमिका पर सवाल और संवाद कर सकती है। पत्रकारिता समाप्त न हो जाए यह चिंता आज सबके सामने है, परंतु भारतीय संस्कृति के आधार पर मीडिया की पुर्नरचना संभव है।
इसके पूर्व प्रातः भारतीय संस्कृति में संवाद की परंपराएं विषय पर चर्चा हुयी जिसके मुख्यवक्ता प्रो. नंद किशोर त्रिखा ने कहा कि पत्रकारिता का मूल उद्देश्य लोकहित होना चाहिए, इसके बिना यह अनर्थकारी हो सकता है। आज पत्रकारिता की आत्मा को अवरोध माना जा रहा है जबकि यह अत्यंत आवश्यकता है। पत्रकार को सत्य , उदारता , स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर अडिग रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि पत्रकारों को समाज में उच्च आदर्शों को प्रस्तुत करना चाहिए। स्वदेश ग्वालियर के संपादक जयकिशन शर्मा ने कहा कि भारतीय साहित्य का वाङमय संवाद से ही शुरू होता है। हमारे यहां धर्म का अर्थ धारणा से है, हमारे धर्म ग्रंथ सही और गलत के निर्णय का आधार देते हैं। विश्व में अन्य किसी संस्कृति में ऐसा नहीं है। उन्होंने भारतीय संस्कृति में संवाद के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा की समाज के अधिकतम लोगों को शोषण से मुक्ति दिलाने का दायित्व पत्रकार का है। सिर्फ रोजी रोटी के लिए पत्रकारिता करना उचित नहीं। देवी अहिल्याबाई विश्वविद्यालय, इंदौर में पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष डॉं. एमएस परमार ने कहा कि आज जब विज्ञान की सारी शक्तियां सब कुछ नष्ट करने में लगी है तव भारतीय ग्रंथों में संवाद की परंपरा इसका हल बताती है। यदि भारतीय ग्रंथों का अनुसरण करें तो पश्चिम की तरफ देखने की जरूरत नही पड़ेगी। हमारी वैदिक मान्यताओं के अनुसार संवाद सत्य पर आधारित होना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज लोकतंत्र के चारों स्तम्भों पर भष्टाचार हावी है जो कि लोकतंत्र के लिए अनर्थकारी है। अनावश्यक खबरों को जरूरतों से ज्यादा तूल देने पर उन्होंने अपनी चिंता जाहिर की। साहित्यकार डॉ. विनय राजाराम ने संवाद में बौद्ध परंपरा पर सबका ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि देशाटन पत्रकारिता का अहम हिस्सा है। बौद्ध धर्म का प्रसार तंत्र आज के पत्रकारों के लिए अनुकरणीय है। विद्यार्थी सत्र में विभिन्न विषयों पर छात्र-छात्राओं ने अपने विचार रखे। इनमें सर्वश्री सुनील वर्मा, मयंकशेखर मिश्रा, नरेंद्र सिंह शेखावत, उर्मि जैन, कुंदन पाण्डेय, पूजा श्रीवास्तव, हिमगिरी ने अपने विचार रखे। सत्रों का संचालन प्रो. आशीष जोशी, डॉ. पवित्र श्रीवास्तव एवं स्निग्धा वर्धन ने किया।
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