मुंबई ॥ शिवसेना ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर पूरी दुनिया में साढ़े नौ करोड़ लोगों द्वारा बोली जाने वाली मराठी भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने की मांग की है। सांसद संजय राउत ने पत्र के जरिए मराठी को शास्त्रीय दर्जा दिलाने के कारणों का उल्लेख किया। फिलहाल, इस श्रेणी में तमिल, संस्कृत, कन्नड़ और तेलुगु भाषा शामिल हैं। पत्र में राउत ने लिखा है कि मराठी भाषा संस्कृत से निकली है और माना जाता है कि संस्कृत से निकलने वाली यह पहली भाषा है।
उन्होंने कहा कि मराठी काफी पुरानी भाषा है, जिसका पहला लिखित दस्तावेज 700 ईस्वी का है, जो कर्नाटक में मिला था। मराठी छत्रपति शिवाजी और पेशवा के शासनकाल में समृद्ध हुई और महाराष्ट्र के अलावा तमिलनाडु के तंजावूर और जिंजी से लेकर उत्तरप्रदेश के झांसी तक कई राजवंशों की आधिकारिक भाषा रही। उन्होंने कहा कि संत कवि मुकुंदराज, ज्ञानेश्वर, तुकाराम और नामदेव ने मराठी को इसकी ऊंचाइयों तक पहुंचाया। पत्र में लिखा गया है कि संत नामदेव के 'अभंग' (श्लोक) को गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल किया गया है और कुछ वर्तमान पाकिस्तान के लायलपुर में पाए गए हैं।
राउत ने पत्र में प्रधानमंत्री से कहा है कि मराठी भारत में चौथी सर्वाधिक बोली जाने वाली और विश्व में 15वीं सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। गौरतलब है कि यह मांग उस वक्त उठाई गई है, जब एक वर्ष के अंदर राज्य में मुंबई सहित दस नगर निगमों का चुनाव होने वाले हैं। शिवसेना के अलावा राज ठाकरे की पार्टी मनसे ने मराठी भाषा के मुद्दे को बड़े पैमाने पर उठाया है।
28-2-2011
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